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ओ घनश्याम ! उमड़ -घुमड़ गरजने वाले बादल न बनो
सबकी विनती है अब कृपा की वर्षा करो प्रभो !

हे दुःखभंजन ! दुःख हरो ,रोग हरो ,संताप हरो , कष्ट हरो प्रभो !🙏

कहते हैं कि दुआ का रंग नहीं होता ,पर दुआ भी कभी-कभी रंग ले आतीहै ।
आइए मिलकर सबके ‘ मंगल भव ‘ के लिए प्रभु से दुआ माँगे 🙏
हे प्रभो कहतें हैं तुम हो
दया के सागर ,फिर क्यों ख़ाली हमरी गागर
दयालु सब पर दया करो 🙏
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‘कहाँ करुणानिधि केशव सोए ‘
अब तो जागो प्रभो जन जन की आर्त पुकार सुनो 🙏

ओ रहनुमा अब तो न देखा जाय बर्बादियों का यह समाँ अपनी रहमत की बारिश सब पर कर
दे 🙏

‘दीनदयाल विरिदु संभारी हरहुँ नाथ अब संकट भारी ‘ 🙏 सर्व मंगलमय हो

हे ईश्वर
लोको समस्त:
सुखिनो भवंतु 🙏

दोनों ओर फार्म थे गेहूं ,मकई के खेत,सेबों के बाग ,टमाटर की फसल थी |अधिकांश खेतों में फसल कट चुकी थी |जगह जगह ‘पंपकिन’ के ढेर लगे थे |पंपकिन हमारे देश में पाए जाने वाले पीले रंग के सीताफल की तरह होता है |एक दिन बाद halloween day था (इसकी चर्चा फिर कभी )|अमेरिका में हर व्यक्ति  halloween day पर घर के बाहर इस पर  चित्रकारी करके रखता है | सानवी बहुत खुश हो रही थी ,हम सब ने ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठ कर सैर करी  फोटो खींची और आगे चल दिए |मौसम अच्छा था ,धूप थी ,हल्की ठंड थी तापमान हमारे दिसंबर के प्रथम सप्ताह के दिन की भांति |

यहाँ से हम ‘लूरे’ की तरफ चले ,खेतों के मध्य से जाती चिकनी ,सपाट ,पतली सड़क पर एक घंटे की यात्रा के पश्चात ‘डेज़ इन ‘ पहुंचे |तरोताजा होकर हम अपनी मंजिल ‘लूरे केव्स ‘ की ओर बढ़े |रास्ते में ‘लूरे सिंगिंग  टॉवर ‘था |यह 117 फीट लंबा स्मारक है जिसमें 17 घंटे लगे हैं ,जहाँ बसंत से फाल सीजन तक दिन भर मुफ्त दर्शन तथा प्रार्थना सभा चलती रहती है |इसके पास ही लगभग एक एकड़ में खूबसूरत भव्य बाग था जिसके चारों ओर  आठ फीट ऊंची बाड़ थी |रहस्यमय कोहरे की परत इसे ओर  आकर्षक बना देती है |बीच -बीच में सङ्गीतमय फव्वारे ,छुपी हुई सुरंगें ,जहाँ -तहाँ  निखरे ताल ,रंग-बिरंगे पुष्प और बैठने के लिए बेंच जहाँ से आप इसका आनंद ले सकते हैं |आगे चले तो पूर्वी अमेरिका की सबसे प्रसिद्ध गुफाएं…

दो -तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर एक संदेश घूम रहा था -अतिथि रिसकी भवः |जिस देश की संस्कृति है-अतिथि देवो भवः वहाँ ऐसा क्यों ? मन में हँसी ,क्रोध ,दुःख  ,निराशा सभी भावों का एक-एक कर उत्थान पतन हुआ |कल एक परिचिता ( मेरे घर से 200 मीटर की दूरी पर रहती हैं )  घर पर आईं ,मुझे कुछ  कागज उन्हें देने थे |मास्क पहन कर गेट खोला और अंदर आने का अनुग्रह किया |मास्क और gloves पहने हुए थीं पर  पहले तो वे कुछ झिझकी  फिर घर के भीतर ना जाकर बाहर बरामदे में ही कुर्सी पर स्प्रे कर के बैठ गईं |मैं  भी 4-5 फीट की दूरी पर कुर्सी खींच कर बैठ गई |उन्होंने अपना पर्स खोला  कि आप इसमें कागज डाल दीजिए |    कुछ भी खाने -पीने से मना कर दिया और कुछ देर बात-चीत  कर चली गईं |पहले जब भी वे मिलने आती थीं तो कॉफी का कप जरूर पीती थीं |उनके जाने के बाद तनु ( मेरी सहायिका ) ने उस कुर्सी को स्प्रे किया और धूप में रख दिया |एक परिचित ने बताया कि  उनके परिवार के दो सदस्य करीबी  शादी में कुछ खाए पिए बिना ही लौट आए अब वे रिश्तेदार नाराज हैं |पिछले लगभग तीन-चार महीने से मानव व्यवहार में परिवर्तन आ  रहा है |कोविड -19 के चलते अपनी सुरक्षा को देखते हुए यह परिवर्तन लक्षित हो रहा है |इस वायरस ने विश्व भर में बदलाव ला दिया है |सब कुछ सामान्य होने में महीनों या हो सकता है वर्षों लग जाए ||

जिंदगी के छोटे -छोटे क्षणों में हम आनंद खोजेगें |स्वास्थ्य ,आर्थिक स्थिति ,रहन-सहन और भी बहुत कुछ बदलेगा |आज संसार में …

महामारी और लॉक्डाउन के संघर्ष के इन दिनों में किसी ने लिखा -we all are sailing in the same boat ।पढ़ने के बाद से मन में एक बैचेनी सी है।क्या सच में हम सब एक ही नाव में सवार हैं?
घरों के अन्दर रह कर भी सबका जीवन अलग-अलग प्रकार का है ।कुछके लिए साप्ताहिक दिनचर्या है -ऑफ़िस के लिए समय से लॉगइन होना ( उन्हें शिकायत है काम बढ़ गया है ) ,कुछ को अकेलेपन से लड़ना पड़ रहा है ,कुछ चाय-कॉफ़ी-सिगरेट पी पी कर समय काट रहें हैं तो कुछ कूड़े के ढेर में
से भोजन टटोल रहें हैं ।कुछ इसलिए काम पर वापस जाना चाहते हैं क्यूँकि उनके सम्मुख
अब परिवार के पेट पालन की समस्या मुँह बाए खड़ी है -निश्चित नहीं कि नौकरी रहेगी कि ख़त्म हो जाएगी ।कुछ सरकार को जी भर कर गाली दे रहें हैं ,कुछ को लगता है यह कुछ ऐसी गम्भीर समस्या नहीं केवल मीडिया और सरकार की मिली भगत है ।कुछ प्रार्थना में लीन हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए ।ऐसे भी हैं जो corona से पीड़ित होकर स्वस्थ हो गये और कुछने अपने प्रियजन को खो भी दिया ।
स्पष्ट है कि हम सब एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ हमारी सोच और आवश्यकता एकदम भिन्न है और इस तूफ़ान के गुज़र जाने के बाद अलग होगी ।हम सब दूसरों की पीड़ा को समझ कर उसे बाँटने का प्रयास करें ।हमें अपनी नाव सबको साथ लेकर ज़िम्मेवारी और करुण भाव के साथ खैनी है तभी कह पायेंगे-during storm we sailed in the same boat.