ओ घनश्याम ! उमड़ -घुमड़ गरजने वाले बादल न बनो
सबकी विनती है अब कृपा की वर्षा करो प्रभो !
हे दुःखभंजन ! दुःख हरो ,रोग हरो ,संताप हरो , कष्ट हरो प्रभो !
आइए मिलकर सबके ‘ मंगल भव ‘ के लिए प्रभु से दुआ माँगे
दयालु सब पर दया करो
ओ घनश्याम ! उमड़ -घुमड़ गरजने वाले बादल न बनो
सबकी विनती है अब कृपा की वर्षा करो प्रभो !
हे दुःखभंजन ! दुःख हरो ,रोग हरो ,संताप हरो , कष्ट हरो प्रभो !
‘कहाँ करुणानिधि केशव सोए ‘
अब तो जागो प्रभो जन जन की आर्त पुकार सुनो
ओ रहनुमा अब तो न देखा जाय बर्बादियों का यह समाँ अपनी रहमत की बारिश सब पर कर
दे
‘दीनदयाल विरिदु संभारी हरहुँ नाथ अब संकट भारी ‘ सर्व मंगलमय हो
हे ईश्वर
लोको समस्त:
सुखिनो भवंतु …
दोनों ओर फार्म थे गेहूं ,मकई के खेत,सेबों के बाग ,टमाटर की फसल थी |अधिकांश खेतों में फसल कट चुकी थी |जगह जगह ‘पंपकिन’ के ढेर लगे थे |पंपकिन हमारे देश में पाए जाने वाले पीले रंग के सीताफल की तरह होता है |एक दिन बाद halloween day था (इसकी चर्चा फिर कभी )|अमेरिका में हर व्यक्ति halloween day पर घर के बाहर इस पर चित्रकारी करके रखता है | सानवी बहुत खुश हो रही थी ,हम सब ने ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठ कर सैर करी फोटो खींची और आगे चल दिए |मौसम अच्छा था ,धूप थी ,हल्की ठंड थी तापमान हमारे दिसंबर के प्रथम सप्ताह के दिन की भांति |
यहाँ से हम ‘लूरे’ की तरफ चले ,खेतों के मध्य से जाती चिकनी ,सपाट ,पतली सड़क पर एक घंटे की यात्रा के पश्चात ‘डेज़ इन ‘ पहुंचे |तरोताजा होकर हम अपनी मंजिल ‘लूरे केव्स ‘ की ओर बढ़े |रास्ते में ‘लूरे सिंगिंग टॉवर ‘था |यह 117 फीट लंबा स्मारक है जिसमें 17 घंटे लगे हैं ,जहाँ बसंत से फाल सीजन तक दिन भर मुफ्त दर्शन तथा प्रार्थना सभा चलती रहती है |इसके पास ही लगभग एक एकड़ में खूबसूरत भव्य बाग था जिसके चारों ओर आठ फीट ऊंची बाड़ थी |रहस्यमय कोहरे की परत इसे ओर आकर्षक बना देती है |बीच -बीच में सङ्गीतमय फव्वारे ,छुपी हुई सुरंगें ,जहाँ -तहाँ निखरे ताल ,रंग-बिरंगे पुष्प और बैठने के लिए बेंच जहाँ से आप इसका आनंद ले सकते हैं |आगे चले तो पूर्वी अमेरिका की सबसे प्रसिद्ध गुफाएं…
परिवर्तन जीवन का सत्य है |हम पृथ्वी के धरातल पर होने वाले परिवर्तनों के देख सकते हैं परंतु सतह के नीचे करोड़ों वर्षों से जो परिवर्तन होता हैं उनकी जानकारी भूगर्भ वैज्ञानिकों से ही प्राप्त होती है |इन रहस्यों से परिचित होने का अवसर कई बार हुआ है परंतु दो बार अलग -अलग स्थानों पर अलग देशों में जो देखा वह अविस्मरणीय है _अद्भुत साम्यता पर एक स्थान पर विज्ञान तो दूसरे स्थान पर धर्म की प्रभुता |अविस्मरणीय यात्रा –
कुछ वर्ष पूर्व की अमेरिका यात्रा में स्वाति और क्षितिज ( बेटी-दामाद )भी साथ में थे |पूर्वी अमेरिका के न्यू जर्सी राज्य के एडीसन नगर में बड़ी बेटी -दामाद -नीति रोहित के पास हम सब ठहरे हुए थे |सप्ताह भर इधर -उधर भ्रमण के पश्चात सप्ताह के अंत में वर्जीनिया राज्य में ‘नेशनल पार्क शेननडोह ‘ और अमेरिका की राजधानी ‘वाशिंगटन ‘देखने का प्रोग्राम बना |शनिवार सुबह 4 बजे सब तैयार थे |पाँच -छह घंटे की यात्रा थी अतः रास्ते के लिए सैंडविच ,पराँठे ,चिप्स ,बिस्कुट ,फल ,कोल्ड ड्रिंक ,पानी ,बर्फ सब रख लिए थे |हाई वे पर कारों की काफी आवाजाही थी |सब अपनी -अपनी मंजिलों की दौड़ में थे |मौसम बहुत सुहावना था |फाल सीजन के चलते पेड़ों के पत्तों का रंग बदल रहा था -हरा,लाल,तांबई , भूरा ,सुनहरी |न्यू जर्सी से चल कर ‘ connecticut ‘ फिर ‘delaware ‘ और फिर ‘baltimore ‘ पहुंचे…
दो दिन जम के वर्षा के बाद आज सुबह नीला आकाश दीख पड़ रहा है ,कहीं -कहीं सफेद-काले बादलों के टुकड़े आकाश में तैर रहे हैं ,पूर्व दिशा में सूर्योदय के कारण बादलों का रंग गुलाबी आभा से मंडित है ,वातावरण में कुछ नमी है ,हल्की -हल्की हवा के झोंके पार्क के पेड़ों को सहलाते हुए गुनगुनाते प्रतीत हो रहे हैं और मैं अपने बरामदे में कुर्सी पर बैठ चाय पीते हुए मन में गुनगुनाती हूँ –
ले चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे
जिस निर्जन मे सागर लहरी अम्बर के कानों में गहरी
निश्छल प्रेम कथा कहती हो गहरी
तज कोलाहल की अवनी रे ( जयशंकर प्रसाद )
प्रकृति व्यक्ति को केवल अन्न धन-धान्य से पूर्ण नहीं करती वरन मन -मस्तिष्क को अपूर्व शांति प्रदान करती है |हरी-भरी वसुंधरा ,कल-कल करते बहते झरने ,उछलती -कूदती -फांदती नदियाँ ,गरजता समुद्र ,किल्लोल करती लहरें ,हरे-भरे घास के लंबे-चोडे मैदान ,बर्फ से लदी पहाड़ियाँ ,बादलों के बीच झाँकता सतरंगी इंद्रधनुष मन को अपार सुकून देता है |एक सुखद जीवन के लिए मस्तिष्क में सत्यता ,होंठों पर प्रसन्नता ,ह्रदय में पवित्रता की जरूरत होती है जिसका मन मस्त है उसके पास समस्त है |पर अभी प्रकृति की इस अपार संपदा का लाभ उठाने में असमर्थ हैं क्योंकि कोरोना के चलते अपने देश में ही विभिन्न राज्यों में यात्रा के नियम कड़े हैं|
सुनो कोरोना तुम भी किसी कठोर गुरु से कम नहीं जितने पाठ पिछले चार महीनों में तुमने पढाए उतने सौ सालों…
दो -तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर एक संदेश घूम रहा था -अतिथि रिसकी भवः |जिस देश की संस्कृति है-अतिथि देवो भवः वहाँ ऐसा क्यों ? मन में हँसी ,क्रोध ,दुःख ,निराशा सभी भावों का एक-एक कर उत्थान पतन हुआ |कल एक परिचिता ( मेरे घर से 200 मीटर की दूरी पर रहती हैं ) घर पर आईं ,मुझे कुछ कागज उन्हें देने थे |मास्क पहन कर गेट खोला और अंदर आने का अनुग्रह किया |मास्क और gloves पहने हुए थीं पर पहले तो वे कुछ झिझकी फिर घर के भीतर ना जाकर बाहर बरामदे में ही कुर्सी पर स्प्रे कर के बैठ गईं |मैं भी 4-5 फीट की दूरी पर कुर्सी खींच कर बैठ गई |उन्होंने अपना पर्स खोला कि आप इसमें कागज डाल दीजिए | कुछ भी खाने -पीने से मना कर दिया और कुछ देर बात-चीत कर चली गईं |पहले जब भी वे मिलने आती थीं तो कॉफी का कप जरूर पीती थीं |उनके जाने के बाद तनु ( मेरी सहायिका ) ने उस कुर्सी को स्प्रे किया और धूप में रख दिया |एक परिचित ने बताया कि उनके परिवार के दो सदस्य करीबी शादी में कुछ खाए पिए बिना ही लौट आए अब वे रिश्तेदार नाराज हैं |पिछले लगभग तीन-चार महीने से मानव व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है |कोविड -19 के चलते अपनी सुरक्षा को देखते हुए यह परिवर्तन लक्षित हो रहा है |इस वायरस ने विश्व भर में बदलाव ला दिया है |सब कुछ सामान्य होने में महीनों या हो सकता है वर्षों लग जाए ||
जिंदगी के छोटे -छोटे क्षणों में हम आनंद खोजेगें |स्वास्थ्य ,आर्थिक स्थिति ,रहन-सहन और भी बहुत कुछ बदलेगा |आज संसार में …
मानव सभ्यता के प्रारंभ में धर्म का बोलबाला था पर आधुनिक युग विज्ञान का युग है | विज्ञान तर्क पर आधारित है तो धर्म आस्था पर |विज्ञान निरंतर प्रकृति के रहस्यों को खोजने में जुटा है उसे क्यों का उत्तर चाहिए पर आस्था दूसरे स्तर पर कार्य करती है जिनका विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं ||विज्ञान में इस क्यों का अर्थ प्रेक्षण और वर्णन है अर्थात जटिल तथ्यों की सरल व्याख्या |कथन की अपेक्षा उसकी परिणति में विश्वास |विज्ञान -विषय वर्णन,परीक्षण या अनुसंधान और परिणाम है |विज्ञान और तकनीक ने मानव को अनेकानेक सुख-सुविधाएं प्रदान की ,हमारे पूर्वजों की अपेक्षाकृत हमारा जीवन बहुत सरल बना दिया ,आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ने मानव की आयु में वृद्धि कर दी है |वैज्ञानिक असंभव शब्द में विश्वास नहीं करता -अगर जीतने की जिद है तो सफलता स्वयं झुक कर स्वागत करती है |जीवन परिवर्तनों का एक समूह है अतः इसे स्वीकारो |हर परिवर्तन एक चुनोती है कुछ सफलता प्रदान करती हैं तो कुछ सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायक |
आस्था के तार ह्रदय के साथ जुड़े हैं |प्रार्थना और विश्वास दोनों ही दिखाई नहीं पड़ते हैं पर इनमें इतनी शक्ति होती है कि ये असंभव को भी संभव बना देते हैं |बचपन से ही विज्ञान की विद्यार्थी थी और रसायन विज्ञान प्रिय विषय था (कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते साहित्य के क्षेत्र में आना पड़ा ) पर बचपन से ही घोर आस्तिक इसे आप परिवार के संस्कार कहें या ईश्वर…
वर्ष 2015 से 21 जून विश्व अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है |योग भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है |लगभग 5000 वर्ष पूर्व ऋग्वेद में सर्वप्रथम इसका परिचय मिलता है |योग अर्थात शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन |यह एक दर्पण है जो हमें अपने भीतर झाँकने का सुअवसर प्रदान करता है |आधुनिक जीवन शैली में संयम के स्थान पर असंयम ,शांति के स्थान पर अशान्ति ,प्रसन्नता के स्थान पर तनाव अप्रसन्नता का पलड़ा अधिक भारी है हम थोड़ा थोड़े की जरूरत है ” कह कर नहीं संतुष्ट हो जाते क्योंकि “sky is the limit ” हमारी सोच है और जब कभी स्वपनों को पूर्ति में असफलता मिलती है तो हम तनावग्रस्त हो उठते हैं |नियमित योग इसी तनाव और असंतुष्टि के भावों से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्ध होता है | यह केवल हमारे देखने के दृष्टिकोण में ही परिवर्तन नहीं लाता वरन हमारे व्यक्तित्व में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर देता है |हमें वर्तमान के उन क्षणों में ले जाने में सफल हो जाता है जहाँ जिंदगी का असली अस्तित्व है |हम पूर्ण संसार पर तो नियंत्रण नहीं पा सकते पर अपने आंतरिक जगत को नियंत्रित कर सकते हैं|यह एकउस प्रकाश पुंज के समान है जो एक बार प्रकाशित हो जाने पर फिर बुझता नहीं परंतु निरंतर अभ्यास से और अधिक प्रज्ज्वलित हो उठता है |
कहा गया है कि ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है ‘ |मेरे दादाजी का निधन 95 …
महामारी कोरोना का संकट प्रतिदिन बढ़त पर है और इसके चलते पिछले तीन -चार दिन से व्हाट्स एप्स ग्रुप्स में home isolation , self care at home से जुड़े अनेकानेक संदेशों की भरमार है |राजनीति के दाँव -पेच भी जोरों पर हैं |एक दूसरे पर दोषारोपण हो रहा है |सरकारी अस्पतालों में स्थान नहीं तो प्राइवेट अस्पताल साधरण आदमी की पहुँच के बाहर है |कवि तुलसीदास के जीवनकाल में महामारी और अकाल दोनों का प्रकोप हुआ था |तुलसीकृत कवितवली में लिखा है –
‘ ऊँचे ,नीचे ,बीच के धनिक रंक ,राजा ,राय
नारि -नर आरत पुकारत सुनै न कोउ
कहैं एक एकन सों कहाँ जाइ का करी ?
यही स्थिति हमारी है जान है तो जहान है तो ठीक था पर अब जान भी और जहान भी दोनों में तालमेल बैठाना महंगा पड़ सकत है | अर्जुन को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीकृष्ण
द्वारा उच्चरित वाक्य -उठो पार्थ गाँडीव संभालों मुझे स्मृतियों के गलियारों में ढकेल देता है |वर्षों किरोड़ीमल महाविद्यालय में पढ़ाते हुए अक्सर कक्षा से पूर्व या दो कक्षाओ के अंतराल में स्टाफ रूम में मेरी व डॉ विद्या सिन्हा की अन्य मित्रों के साथ घर-परिवार-कॉलेज ,साहित्य ,राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय अनेक विषयों पर चाय पर चर्चा होती थी जिस पर घंटी की गूंज विराम लगा देती और हम अपना रजिस्टर पुस्तक आदि उठाते हुए एक-दूसरे को देखते हुए कहते -उठो पर्थ गाँडीव संभालों और फिर अपने उस गाँडीव से अपने विद्यार्थियों को निष्काम …
बचपन के दिन भी क्या दिन थे -खेल-कूद ,मस्ती से भरपूर सच में –
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी ( सुभद्रा कुमारी चोहान )
बहुत दिनों के बाद आज सुबह- सुबह घर के बाहर सैर कर रही थी |जबसे लॉक डाउन हुआ है घर की चारदीवारी के भीतर ही सैर हो रही है |घर के सामने पार्क है पर नगर निगम की बेरुखी के कारण खस्ता हालत में है |अन्य पेड़ों के बीच में अमलतास के चार पाँच पेड़ हैं जो पीले फूलों से लदे अपनी भीनी भीनी सुगंध हवा में फैला रहे थे |इन्ही के मध्य एक आम का वृक्ष है पास जाकर देखने पर पाया कि इस बार उस पर फल लगे हैं |मेरे चेहरे पर मुस्कान खिल उठी |हरे- हरे आम लटक रहे थे और बच्चों के बाहर न खेलने के कारण बचे हुए थे |कितनी मीठी यादें याद आई |
बचपन का एक बड़ा भाग उत्तरी उत्तर प्रदेश में बीता है |पिताजी शुगर फैक्ट्री में जनरल मैनेजर थे तो बिजनोर ,मुरादाबाद ,रामपुर, हल्द्वानी (अब उत्तराखंड )इन्ही क्षेत्रों में रहे |यह सभी क्षेत्र आम के बागों से भरपूर हैं |बसंत ऋतु के आगमन के साथ आम्रवृक्ष मंजरियों से लद जाते थे ,कोयल कुहुकने लगती और प्रतीक्षा शुरू हो जाती थी कि कब पेड़ पर फल आयेंगे |बात याद आती है अमरोहा की |स्कूल में बहुत से आम के पेड़ थे ,घर से माँ से छिपा कर नमक -मिर्च की पुड़िया बनाकर बस्ते में रख लेते थे और intervl में कच्चे आम खोज कर चटकारे लेकर खाया जाता था |कई बार इसीलिए कान पकड़ कर कक्षा के बाहर खड़े रहने की सजा…