Category: लेख

दो दिन जम के वर्षा  के बाद आज सुबह नीला आकाश दीख पड़ रहा है ,कहीं -कहीं सफेद-काले बादलों के टुकड़े आकाश में तैर रहे हैं ,पूर्व दिशा में सूर्योदय के  कारण बादलों का रंग गुलाबी आभा से मंडित है ,वातावरण में कुछ नमी है ,हल्की -हल्की हवा के झोंके पार्क के पेड़ों को सहलाते हुए गुनगुनाते प्रतीत हो रहे हैं और मैं अपने बरामदे में कुर्सी पर बैठ चाय पीते हुए मन में गुनगुनाती  हूँ –

ले  चल मुझे भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे धीरे

जिस निर्जन मे सागर लहरी अम्बर के कानों में गहरी

निश्छल प्रेम कथा कहती हो गहरी

तज कोलाहल की अवनी रे ( जयशंकर प्रसाद )

प्रकृति व्यक्ति को केवल अन्न  धन-धान्य से पूर्ण नहीं करती वरन मन -मस्तिष्क को अपूर्व शांति प्रदान करती है |हरी-भरी वसुंधरा ,कल-कल करते बहते झरने ,उछलती -कूदती -फांदती नदियाँ ,गरजता समुद्र ,किल्लोल करती लहरें ,हरे-भरे घास के लंबे-चोडे मैदान  ,बर्फ से लदी पहाड़ियाँ ,बादलों के बीच झाँकता सतरंगी इंद्रधनुष मन को अपार सुकून देता है |एक सुखद जीवन के लिए मस्तिष्क में सत्यता ,होंठों पर प्रसन्नता ,ह्रदय में पवित्रता की जरूरत होती है जिसका मन मस्त है उसके पास समस्त है |पर अभी प्रकृति की इस अपार संपदा का लाभ उठाने में असमर्थ हैं क्योंकि कोरोना के चलते अपने देश में ही विभिन्न राज्यों में यात्रा के नियम कड़े हैं|

सुनो कोरोना तुम भी किसी कठोर गुरु से कम नहीं जितने पाठ पिछले चार महीनों में तुमने पढाए उतने सौ सालों…

मानव सभ्यता के प्रारंभ में धर्म का बोलबाला था पर  आधुनिक युग विज्ञान का युग है | विज्ञान तर्क पर आधारित है तो धर्म आस्था पर |विज्ञान निरंतर प्रकृति के रहस्यों को खोजने में जुटा है उसे क्यों का उत्तर चाहिए पर आस्था दूसरे स्तर पर कार्य करती है जिनका विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं ||विज्ञान में इस क्यों का अर्थ प्रेक्षण और वर्णन है अर्थात जटिल तथ्यों की  सरल व्याख्या |कथन की अपेक्षा उसकी परिणति में विश्वास |विज्ञान -विषय वर्णन,परीक्षण या अनुसंधान और परिणाम है |विज्ञान और तकनीक ने मानव को अनेकानेक सुख-सुविधाएं प्रदान की ,हमारे पूर्वजों की अपेक्षाकृत हमारा जीवन बहुत सरल बना दिया ,आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ने मानव की आयु में वृद्धि कर दी  है |वैज्ञानिक असंभव शब्द में विश्वास नहीं करता -अगर जीतने की जिद है तो सफलता स्वयं झुक कर स्वागत करती है |जीवन परिवर्तनों का एक  समूह है अतः इसे स्वीकारो |हर परिवर्तन एक चुनोती है कुछ सफलता प्रदान करती हैं तो कुछ सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायक |

आस्था के तार ह्रदय के साथ जुड़े हैं |प्रार्थना और विश्वास दोनों ही दिखाई नहीं पड़ते हैं पर इनमें इतनी शक्ति होती है कि  ये असंभव को भी संभव बना देते हैं |बचपन से ही विज्ञान की विद्यार्थी थी और रसायन विज्ञान प्रिय विषय था (कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते साहित्य के क्षेत्र में आना पड़ा ) पर बचपन से ही  घोर आस्तिक इसे आप परिवार के संस्कार कहें या  ईश्वर…

Amphan

महामारी कोविद-19 के चलते पूरे देश में लॉकडाउन -4 घोषित हुआ |उसी दिन भारतीय मौसम विभाग ने बंगाल और उड़ीसा के समुद्री तटों पर भयंकर तूफान आने की घोषणा की जिसकी गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा |20 मई को इसने दोपहर तक प्रवेश करना था |महामारी की आपदा  से पीड़ित जनमानस को भयंकर तूफान की तीव्र गति  की हवाओ ,उखड़ते पेड़ों ,उड़ते छप्पर ,डोलती नावों  ने दिग्भ्रमित कर दिया है |हम घर बैठ कर मीडिया द्वारा दिखाए  जा रहे समाचारों से केवल अनुमान लगा सकते हैं |ये लहरें कुछ ऐसी हैं –

उधर  गरजती सिंधु लहरियाँ

कुटिल काल के जालों सी

चलीं या रहीं फेन उगलती

फन फैलाए व्यालों     सी    -( कामायनी -जयशंकर प्रसाद )

प्रसाद जी ने प्रलय का चित्रण किया है |इससे सभी सुरक्षित रहें   |…

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला ‘की बहुप्रसिद्ध कविता ‘वह तोड़ती पत्थर ‘ की कुछ पंक्तियाँ स्मरण-आ रही हैं –
गर्मियों के दिन/दिवस का तमतमाता रूप /रूई ज्यों जलती हुई भू /गर्द चिनगी छा गयी /देखा मुझे उस दृष्टि से /जो मार खा रोई नहीं
निराला जी की इस कविता की चर्चा प्रासंगिक है |जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताऐं हैं -रोटी,कपड़ा और मकान |घर से सैकड़ों मील घर-परिवार से दूर विभिन्न राज्यों में रोजी रोटी की खोज में आए असंख्य प्रवासी जहां काम मिलता है वहीं उनका डेरा हो जाता है |मोबाईल सुविधा हो जाने से घर से नाता भी जुड़ा रहता है |पर इस आपदा के समय न दो रोटी का जुगाड़ है न हाथ में पैसा न सिर पर छत न कहीं से कोई आशवासन ||हम में से कुछ ने खाना बाँटा फिर स्वयमं को अपने घरों में सुरक्षित कर लिया -हमारे पास भोजन भी है और छत भी |वे दूसरे थे अकेले इस आपदा की घड़ी में | वे चल पड़े पैदल अपना सामान अपने सिरों पर लाद परवाह नहीं की कि सैकड़ों मील दूर घर कैसे पहुंचेंगे |अनेक अपने परिवारों के साथ में -बिलखते बच्चे ,पत्नी-लकड़ी की छोटी हाथ से खींचती गाड़ी में सोए बच्चे और सामान के साथ ,सिर पर गठरी लादे बूढ़े माता -पिता ,पिता को साइकिल पर बैठा कर ले जाने वाली बेटियाँ |वे चलते रहे चलते रहे कुछ थक कर सड़क पर सोये कुछ रेल की पटरी पर सो जान गंवा बैठे,तो कुछ दुर्घटना में |इस यात्रा में कितनों ने घर पहुचने से पहले अपनों को खो दिया |इन प्रवासियों की सूनी आँखों की…

जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
…………
दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की 🙏

‘रामचरितमानस ‘ का अनेकों बार जीवन में पठन-पाठन किया है ।बचपन में ‘ सम्पूर्ण रामायण ‘ देखी थी पर कल ‘उत्तर रामायण’ का अंतिम episode मन को झकझोर गया ।सदियों से मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और गरिममयी जगतजननी सीता की गाथा जनमानस के ह्रदयों में अपना स्थान बनाए हुए है ,आशीर्वाद दिया जाता है सीता की भाँति सौभाग्यवती भव ।
सीता के जीवन की अनेक छवियाँ हैं – राजमहलों में पली सुकुमार वैदेही , दशरथ की पुत्रवधू ,रघुनन्दन की पत्नी बन वनों में विचरने वाली सीता ,अयोध्या की महारानी सीता और फिर बाल्मीकि के आश्रम में कठोर तपस्विनी ममतामयी वनदेवी ।सीता का वनदेवी रूप नारी की अदम्य जिजीविषा का प्रतीक है जो आश्रम में अपनी
सन्तान को जन्म दे कर निरंतर संघर्ष कर उन्हें स्वावलंबी संस्कारी और शिक्षित बनाती है ।जो प्रश्न मुझे मथ रहा है ,बैचेन कर रहा है -नारी की बार बार परीक्षा क्यों , आलोचना क्यों ,राजा के लिए अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए समाज की मोहर की आवश्यकता क्यों ।यह नारी की अस्मिता पर प्रहार है ।पति द्वारा राजधर्म की रक्षा हेतु निर्वासित सीता पिता के घर भी जा सकती थी पर वह स्वाभिमानिनी नहीं गई ।लव -कुश द्वारा वाल्मीकिकृत रामायण सुनने के पश्चात् पूर्ण सभा द्रवित हो उठती है पर प्रश्न कोई नहीं उठाता ।राजगुरु वशिष्ट भी अनुत्तरित हैं ।राजाराम पुनः लोकोपवाद से बचने के लिए सीता को सभा में उपस्थित हो शुद्धता की शपथ लेने की शर्त रखते हैं ।ये

जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
…………
दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की |

कल netsurfing करते हुए America में Corona के प्रभाव पर एक लेख पढ़ रही थी जिसमें किसी ने Newyork की वर्तमान अवस्था के लिए कहा-
‘Not completely dead,it just has this kind of ghost city tumbleweed quality ‘
क्या से क्या हो गया ।पिछले वर्षों में अनेक बार अमेरिका की यात्राएँ की हैं । Newyork शहर का अधिकांश हिस्सा मेंने घूमा है ।वह शहर जो संपूर्ण विश्व से पर्यटकों को आकर्षित करता है।Times Square वह जीवन्त हिस्सा जो 24 घंटे सोता नहीं neon lights, electronic billboards, branded stores ,music -dance भीड़ से भरपूर स्थान ।आज सड़कें जनविहीन हैं प्रकाश तो है पर सन्नाटा छाया है ।सुनसान दुकाने, स्टोर बंद उजड़ा चमन ।corona का America में सबसे अधिक
प्रभाव newyork शहर पर हुआ है ।शक्तिशाली समृद्ध देश आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के होते हुए भी अपने नागरिकों की इस महामारी से पूर्ण सुरक्षा करने में असमर्थ हो रहा है ।
कॉलेज में पढ़ाते हुए वर्षों मेंने हिन्दी Hons तृतीय वर्ष को छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत की ‘परिवर्तन ‘ कविता पढ़ाई पर यह कभी नहीं सोचा था कि उसमें वर्णित सत्य इस प्रकार से घटित होगा । उस असीम के सम्मुख मानव नगण्य है –
अहै निष्ठुर परिवर्तन
तुम्हारा ही ताडंव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन
निखिल उत्थान-पतन
……
करते हो विश्व को उत्पीडन

स्पष्ट है उस असीम का हल्का सा प्रकोप भी हमें जीवन

काशी या बनारस एक ही शहर के दो नाम ,ऐसे ही जैसे राम कहो या रहीम कहो मतलब तो एक ईश्वर से ही है। काशी शब्द संस्क्रत के “कश”शब्द से बना है जिसका अर्थ है चमकना और वास्तव मॅ प्राचीन काल से ही धर्म,संस्क्रति और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व में प्रसिद्ध रहा है ।शिव की नगरी काशी –ऐसा माना जाता है कि शिव यहां विश्वेश्वर और अविमुक्तेश्वर रुप में विराजमान हैं ।काशी के पास सारनाथ में महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था ।शंकराचार्य,पतंजलि,रामानुजाचार्य ,तुलसीदास,रामानन्द,कबीर जैसे महान धर्म प्रचारक ,सुधारक काशी की देन हैं ।

यॉ तो कबीर ने कहा है–जो कासी तन तजे सरीरा रामहि कहां निहोरा और वे स्वयं मरने से पहले काशी छोड कर चले गये पर मणिकरणिका घाट पर निरन्तर जलती चिताऍ काशीवास शब्द को चरितार्थ करती हैं ।अनेकानेक वर्षॉ तक दूरदराज से लोग अपने जीवन के अतिंम काल में काशी चले आते थे इस सोच के साथ कि यहां मरेंगे तो मोक्ष मिल जायेगा यानि बार-बार के जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति ।कितना सत्य है नहीं जानती पर आज भी आपको काशी की कुछ खास धर्मशालाऑ में दूर के अनेक गांवॉ -शहरॉ से अपने अन्तिम सांसॅ गिनते लोग मिल जायेंगे जो इसी सोच को लिए हैं कि शिव की नगरी में …

रविवार १ जुलाई २०१२ को मोरगेनविली न्यू जर्सी मॅ ‘हिन्दुअम्रेरिकन टेम्पल एन्ड कल्चर सॅटर’ मॅ श्री कृष्ण मंदिर मॅ मूर्तियॉ की प्राण प्रतिष्ठा और महाकुम्भाभिषेकम का विशाल आयोजन हुआ । शुक्रवार २८ जून से ही प्रारम्भ हुए  उत्सव ४जुलाई को समाप्त हुए ।इस मंदिर मॅ प्रधान मूर्ति भगवान गुरूवायूरप्प्न की है पर इसके साथ ही गणेश जी,बालाजी और श्रीदेवी व भूदेवी,शिव और अम्बिका , सत्यनारयण, कृष्ण,दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती,हनुमान आदि देवी-देवताऑ तथा नवग्रहॉ की मूर्तियॉ को भी स्थापित किया गया है ।सारी मूर्तियां ग्रेनाइट की बनी हैं तथा तमिलनाडु के मूर्तिकारॉ ने इन्हॅ बनाया है ।

यह मंदिर ४० एकड मॅ बना है ।ऊपर के तल पर मंदिर है तो निचले तल पर विभिन्न अवसरॉ पर प्रयोग किये जाना वाला कक्ष है जिसमॅ सब प्रकार की सुविधाऍ हैं ।गोशाल का निर्माण किया जा रहा है ।मई के महीने मॅ मूर्तियॉ को पहनाये जाने वाले वस्त्रॉ तथा आभूषणॉ तथा पूजा के लिए चांदी के बरतनॉ की जनता के लिए प्रदर्शनी लगाई गई जिससे लोग उन्हॅ देख भी पायॅ और अगर वे किसी का भी प्रयोजक बनना चाहॅ तो  ऐसा कर सकॅ ।

इस सात दिन के कार्यक्रम मॅ हवन ,पूजा, भजन गायन ,शलोक उच्चारण,कत्थक -ओडिसी,भारतनाट्यम -कुचीपुडी नृत्य ,सितारवादन…