आज सुबह जब बाहर देखा तो सूरज की किरणॉ को छ्न-छ्न कर पत्तॉ मे से आते
पाया ।मन खिल उठा और अचानक एक कवि की कविता याद आई–
“मैने सूरज की आंखॉ मे झांक कर कहा
मुझे तुम अपना जैसा बना लो
मुझे सबकी जीवन की रोशनी बना दो
सूरज की सुबह की किरणॉ ने तत्काल कहा
पहले जलती हुई आग का गोला बनो
स्वयं को जलाओ
अपने अहं अपनी इच्छाऑ को भस्म करो
फिर मेरे पास शान्त समुद्र की भांति आओ
मै तुम्हे वह बनाऊगा जिसने मुझे बनाया है।’
सोचने लगी वह कितना महान है जिसने पूरा विश्व बनाया है…