Category: सामन्य विषय

वर्ष 2015 से 21 जून विश्व अन्तर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है |योग भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है |लगभग 5000 वर्ष पूर्व ऋग्वेद में सर्वप्रथम इसका परिचय मिलता है |योग अर्थात शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन |यह एक दर्पण है जो  हमें अपने भीतर झाँकने का सुअवसर प्रदान करता है |आधुनिक जीवन शैली  में संयम के स्थान पर असंयम ,शांति के स्थान पर अशान्ति ,प्रसन्नता के स्थान पर तनाव   अप्रसन्नता का पलड़ा अधिक  भारी है हम थोड़ा  थोड़े की जरूरत है ”   कह कर नहीं संतुष्ट हो जाते क्योंकि “sky is the limit ” हमारी सोच है और जब कभी स्वपनों को पूर्ति में असफलता मिलती है तो  हम तनावग्रस्त हो उठते हैं |नियमित योग इसी तनाव और असंतुष्टि के भावों से मुक्ति दिलाने में सहायक सिद्ध होता है | यह केवल हमारे देखने के दृष्टिकोण में ही परिवर्तन नहीं लाता वरन हमारे व्यक्तित्व में ही आमूल-चूल परिवर्तन  कर देता है |हमें वर्तमान के उन क्षणों में ले जाने में सफल हो जाता है जहाँ जिंदगी का असली अस्तित्व है |हम पूर्ण संसार पर तो नियंत्रण नहीं पा सकते पर अपने आंतरिक जगत को नियंत्रित कर सकते हैं|यह एकउस  प्रकाश पुंज के समान है जो एक बार प्रकाशित हो  जाने पर फिर बुझता नहीं परंतु निरंतर अभ्यास से और अधिक प्रज्ज्वलित हो उठता है |

कहा गया है कि ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है ‘ |मेरे दादाजी का निधन 95 …

महामारी कोरोना का संकट  प्रतिदिन बढ़त पर है और इसके चलते पिछले तीन -चार दिन से व्हाट्स एप्स ग्रुप्स में home isolation , self care at home से जुड़े अनेकानेक संदेशों की भरमार है |राजनीति के दाँव -पेच भी जोरों पर हैं |एक दूसरे पर दोषारोपण हो रहा है |सरकारी अस्पतालों में स्थान नहीं तो प्राइवेट अस्पताल साधरण आदमी की पहुँच के बाहर है |कवि तुलसीदास के जीवनकाल  में महामारी और अकाल दोनों   का प्रकोप हुआ   था  |तुलसीकृत  कवितवली  में  लिखा है –

‘ ऊँचे ,नीचे ,बीच के धनिक रंक  ,राजा ,राय

नारि -नर आरत पुकारत सुनै न कोउ

कहैं एक एकन सों कहाँ जाइ का करी ?

यही स्थिति  हमारी है जान है तो जहान है तो ठीक था पर अब जान भी और जहान भी दोनों में तालमेल बैठाना महंगा पड़ सकत है | अर्जुन को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीकृष्ण

द्वारा उच्चरित वाक्य -उठो पार्थ गाँडीव संभालों मुझे स्मृतियों के गलियारों में ढकेल देता है |वर्षों किरोड़ीमल महाविद्यालय में पढ़ाते हुए अक्सर कक्षा से पूर्व या दो कक्षाओ के  अंतराल में स्टाफ रूम में मेरी  व डॉ विद्या सिन्हा की अन्य मित्रों के साथ घर-परिवार-कॉलेज ,साहित्य ,राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय अनेक विषयों पर चाय पर चर्चा होती थी जिस पर घंटी की गूंज विराम लगा देती और हम अपना रजिस्टर पुस्तक आदि उठाते हुए एक-दूसरे को देखते हुए कहते -उठो पर्थ गाँडीव संभालों और फिर अपने उस गाँडीव से अपने विद्यार्थियों को निष्काम …

बचपन के दिन भी क्या दिन थे -खेल-कूद ,मस्ती से भरपूर सच में –

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी

गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी   ( सुभद्रा कुमारी चोहान )

बहुत दिनों के बाद आज सुबह-  सुबह घर के बाहर सैर कर रही थी |जबसे लॉक डाउन हुआ है घर की चारदीवारी के भीतर ही सैर हो रही है |घर के सामने पार्क है पर नगर निगम की बेरुखी के कारण खस्ता हालत में है |अन्य पेड़ों के बीच में अमलतास के चार पाँच पेड़ हैं जो पीले फूलों से लदे अपनी भीनी भीनी सुगंध हवा में फैला रहे थे |इन्ही के मध्य एक आम का वृक्ष है पास जाकर देखने पर पाया कि  इस बार उस पर फल लगे हैं |मेरे चेहरे पर मुस्कान खिल उठी |हरे- हरे आम लटक रहे थे और बच्चों के बाहर न खेलने के कारण बचे हुए थे |कितनी मीठी यादें याद आई |

बचपन का एक बड़ा भाग उत्तरी उत्तर प्रदेश में बीता है  |पिताजी शुगर फैक्ट्री में जनरल मैनेजर थे तो बिजनोर ,मुरादाबाद  ,रामपुर, हल्द्वानी (अब उत्तराखंड )इन्ही क्षेत्रों में रहे |यह सभी क्षेत्र आम के बागों से भरपूर हैं |बसंत ऋतु के आगमन के साथ आम्रवृक्ष मंजरियों से लद  जाते थे ,कोयल कुहुकने लगती और प्रतीक्षा शुरू हो जाती थी  कि  कब पेड़ पर फल आयेंगे |बात याद आती है अमरोहा की |स्कूल में बहुत से आम के पेड़ थे ,घर से माँ से छिपा कर नमक -मिर्च की पुड़िया बनाकर बस्ते में रख लेते थे और intervl  में कच्चे आम खोज कर चटकारे लेकर खाया जाता था |कई बार इसीलिए कान पकड़ कर कक्षा के बाहर खड़े रहने की सजा…

मुकेश आनन्द ९० के दशक के मेरे प्रिय छात्रों में से एक हैं ।वर्षों तक विज्ञापन और मीडिया की दुनिया से जुड़े रहे ।star TV content studio के वाइस प्रेज़िडेंट ।पिछले वर्ष इस सब का त्याग कर एक नई पहल की है -वेब फ़िल्म और वेब सिरीज़ को समर्पित एक नए डिजिटल studio की शुरुआत की जिसका नाम रखा है -Hip Hip HERAY ।यह प्रयास अपने में अनोखा इसलिए है क्योंकि यह महिला कहानीकाराें और निर्माताओ को फ़िल्म एवं मनोरंजन जगत् की पारम्परिक सीमाओं को तोड़ कर उनको एक नयी पहचान देने की पहल की दृष्टि से सराहनीय है ।इंडिया टुडे मैगज़ीन ने मई के अंक में मुकेश और उनके इस startup पर विस्तृत लेख छापा है आप भी पढ़िए —/

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बॉलीवुड का एक और स्तम्भ धराशायी हो गया ।अभिनेता ऋषिकपूर नहीं रहे ।अपनी जिजीविषा और अदम्य शक्ति के साथ कैंसर जैसे रोग के साथ लगभग दो वर्ष लड़ते हुए आज अपने प्राण त्याग दिए ।१९७० में ‘मेरा नाम जोकर ‘ फ़िल्म में junior राजकपूर के अभिनय से अपनी फ़िल्म यात्रा शुरू करने वाले ऋषिकपूर जब १९७३ में ‘बॉबी’ में एक रोमांटिक युवा अभिनेता के रूप में डिम्पल कपड़िया के साथ आए तो जहाँ इस फ़िल्म ने अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की वहीं युवा वर्ग ही नहीं सभी आयु वर्ग के लोगों में अपनी छवि
स्थापित कर ली ।उसके बाद ऐसी फ़िल्मों की एक लम्बी क़तार है जिनमे -क़र्ज़ ,सागर ,हिना ,कभी -कभी ,अमर-अकबर -ऐन्थॉनी ,प्रेमरोग ,दीवाना उल्लेखनीय हैं ।९० के दशक के उत्तरार्ध में ‘आ
अब लौट चलें ‘ जैसी सफल फ़िल्म का निर्देशन किया ।उम्र के साथ मुख्य अभिनेता का किरदार छोड़ कर जब चरित्र अभिनय करना प्रारम्भ किया तो यहाँ भी वे अपने अभिनय कौशल से छा जाते थे फिर वह चरित्र चाहे ‘पटियाला हाउस’ ‘अग्निपथ’ के क्रोधी पिता का हो या कपूर एंड sons के प्यारे दादाजी का ,student of the year के प्रिन्सिपल का हो या १०२ नॉट आउट में अमिताभ के पुत्र का ।सभी उनकी कला और स्पष्टवादिता के क़ायल थे ।ऐसे कलाकार को मेरा अश्रुपूरित 🙏नमन

महामारी और लॉक्डाउन के संघर्ष के इन दिनों में किसी ने लिखा -we all are sailing in the same boat ।पढ़ने के बाद से मन में एक बैचेनी सी है।क्या सच में हम सब एक ही नाव में सवार हैं?
घरों के अन्दर रह कर भी सबका जीवन अलग-अलग प्रकार का है ।कुछके लिए साप्ताहिक दिनचर्या है -ऑफ़िस के लिए समय से लॉगइन होना ( उन्हें शिकायत है काम बढ़ गया है ) ,कुछ को अकेलेपन से लड़ना पड़ रहा है ,कुछ चाय-कॉफ़ी-सिगरेट पी पी कर समय काट रहें हैं तो कुछ कूड़े के ढेर में
से भोजन टटोल रहें हैं ।कुछ इसलिए काम पर वापस जाना चाहते हैं क्यूँकि उनके सम्मुख
अब परिवार के पेट पालन की समस्या मुँह बाए खड़ी है -निश्चित नहीं कि नौकरी रहेगी कि ख़त्म हो जाएगी ।कुछ सरकार को जी भर कर गाली दे रहें हैं ,कुछ को लगता है यह कुछ ऐसी गम्भीर समस्या नहीं केवल मीडिया और सरकार की मिली भगत है ।कुछ प्रार्थना में लीन हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए ।ऐसे भी हैं जो corona से पीड़ित होकर स्वस्थ हो गये और कुछने अपने प्रियजन को खो भी दिया ।
स्पष्ट है कि हम सब एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ हमारी सोच और आवश्यकता एकदम भिन्न है और इस तूफ़ान के गुज़र जाने के बाद अलग होगी ।हम सब दूसरों की पीड़ा को समझ कर उसे बाँटने का प्रयास करें ।हमें अपनी नाव सबको साथ लेकर ज़िम्मेवारी और करुण भाव के साथ खैनी है तभी कह पायेंगे-during storm we sailed in the same boat.

जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
…………
दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की |

वर्ष 2020 विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।वास्तव में ज़िन्दगी का दूसरा नाम परिवर्तन है ।सत्तर के दशक का एक प्रसिद्ध गीत है-
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना
सच किसको पता था कि नव वर्ष अपने साथ सम्पूर्ण संसार के लिए ऐसी प्राकृतिक आपदा लेकर आएगा ।उतार-चढ़ाव ,उत्थान -पतन ,सुख-दुःख सृष्टि के नियम हैं उससे कैसा घबराना ।जीवन के हर कठिन प्रश्न का जीवन से ही हल मिलता है ।दिन-रात ,सूर्योदय-सूर्यास्त ,चाँदनी -नीलाभ गगन- चाँद-तारे ,बदलती ऋतुऐं प्रकृति का यह रूप आकर्षक है तो अनगिनत वर्षों से मानव-जाति द्वारा निरंतर कुचली जा रही प्रकृति के क्रोध का , उसके भयंकर रूप को भी स्वीकार करना पड़ेगा ।समुद्र गरजता है तो शांत निर्मल सागर मन को असीम शांति भी देता है , गरजते -बरसते बादल नदियों के जल को बाढ़ में बदल देते हैं तो तपती धरा को शान्त भी करते हैं ।विश्वास की प्रार्थना अंधकार के हर बंधन को तोड़ने में समर्थ होती है ।विश्वास रखिए -हम होंगे कामयाब

वर्ष 2020 विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।वास्तव में ज़िन्दगी का दूसरा नाम परिवर्तन है ।सत्तर के दशक का एक प्रसिद्ध गीत है-
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना
सच किसको पता था कि नव वर्ष अपने साथ सम्पूर्ण संसार के लिए ऐसी प्राकृतिक आपदा लेकर आएगा ।उतार-चढ़ाव ,उत्थान -पतन ,सुख-दुःख सृष्टि के नियम हैं उससे कैसा घबराना ।जीवन के हर कठिन प्रश्न का जीवन से ही हल मिलता है ।दिन-रात ,सूर्योदय-सूर्यास्त ,चाँदनी -नीलाभ गगन- चाँद-तारे ,बदलती ऋतुऐं प्रकृति का यह रूप आकर्षक है तो अनगिनत वर्षों से मानव-जाति द्वारा निरंतर कुचली जा रही प्रकृति के क्रोध का , उसके भयंकर रूप को भी स्वीकार करना पड़ेगा ।समुद्र गरजता है तो शांत निर्मल सागर मन को असीम शांति भी देता है , गरजते -बरसते बादल नदियों के जल को बाढ़ में बदल देते हैं तो तपती धरा को शान्त भी करते हैं ।विश्वास की प्रार्थना अंधकार के हर बंधन को तोड़ने में समर्थ होती है ।विश्वास रखिए -हम होंगे कामयाब

गुप्तजी की यशोधरा मॅ राहुल कहता है–

“मां कह एक कहानी

बेटा समझ् लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी

कहती है मुझसे यह चेटी

तू मेरी नानी की बेटी”

तो बचपन का मतलब था गर्मी की छुट्टीयॉ मॅ नानी के घर जाना ,मजा करना और रात को नानी से  कहानी सुनना ।जिस दिन से new jersy आई हूं रोज रात को मेरी सात वर्षीय नातिन सान्वी मेरे पास आकर कहती है नानी आज आपको कौन सी कहानी पढ कर सुनाऊं ।समय बदल गया है ।उसकी पढी कहानी मेरे लिए लोरी का काम करती है और मैं बिना दवा के गहरी नींद मॅ सो जाती हूं ।

तो आज नानी की कहानी की बजाए नातिन की कहानी अधिक रोचक है।…