Category: यात्राऍ

हार्वर्ड स्कवायर की एक शाम हमेशा याद रहेगी ।। आठवॅ हिन्दी  सम्मेलन  मॅ  हिस्सा लेने के लिए न्यूयार्क आयी थी । नीति ( अपनी बडी बेटी ) के पास ठहरी थी।सम्मेलन शुरू होने मॅ अभी कुछ दिन शेष थे । अतः घूमने  का कार्यक्रम बना। पहले हम लोग ‘फ्लोरिडा’ गये और वहां से लौटने के बाद  ’बोस्टन’ गए । सुबह की फ्लाइट से स्वाति ने पहुंचना था ।उसे हमने एयरपोर्ट से ही ले लिया ।न्यू जर्सी से लगभग ५ घंटे की ड्राइव है । दो घंटे के बाद ‘रोड आइलॅड’ रूक कर नाशता किया । स्वाति कुछ फ्रेश हुई  । १२ बजे के करीब हमलोग बोस्ट्न पहुंचे  ।नीति ने हिल्टन होटल मॅ पहले ही कमरे बुक करा दिए थे ।अतः कोई समस्या नहीं हुई ।कुछ देर आराम करने के बाद बोस्टन घूमने चले ।

‘बोस्टन’ मेस्चस्टस (उत्तरी अमेरिका का एक राज्य है) की राजधानी है और अमेरिका के पुराने शहरॉ मॅ एक है। यह राजनीतिक और सामजिक परिवर्तन की गतिविधियॉ का केन्द्र रहा है ।इस शहर ने अमेरिका के विज्ञान,इंजीनियरिंग,संस्कृति और समाज को बनाने मॅ सहायता दी है । विश्व की श्रेष्ठतम शैक्षिक संस्थाऍ यहां है ।यहां अधिकांश नौकरियां धन ,स्वास्थय ,सुरक्षा,शिक्षा आदि से जुडी हैं ।विश्व से लाखॉ लोग  शैक्षिक,सांस्कृतिक,खेल सम्बंधी गतिविधियॉ मॅ हिस्सा लेने और व्यापार करने आते हैं।सभी…

सप्ताह के अन्त मॅ ‘फाल ‘देखने का कार्यक्र्म बनाया।अतः मै,नीति और नन्हीं सान्वी जो एक सप्ताह मॅ ही घुल-मिल गई थी- ही गए। उत्तरी अमेरिका मॅ यह बहुत प्रसिध है।लगभग १६वीं शताब्दी से प्रचलित है।गर्मी समाप्त हुई और सर्दी बढ्ने लगती है।प्रकृति रंग बदलने लगती है-कहीं लाल ,कहीं पीला ,कहीं सुनहरा,कहीं सिंदूरी । ‘फाल’ का अर्थ है रंग परिवर्तन के पश्चात् पेडॉ के पत्तॉ का गिरना।हमारे देश मॅ जब पतझड आता है तो चारॉ तरफ पीले पत्तॉ का ढेर लग जाता है,जो मन को उदासी,अवसाद से भर देता है पर मन मॅ कहीं उछाह की किरण भी होती है। आने वाली ऋतु बसंत है जब आम्र के पेड मंजरियॉ से लद जायेंगे।असंख्य रंग-बिरंगे फूल खिलॅगे और वृक्षॉ पर नए पत्तॅ आयॅगे ।

इस बार जब मैं यहां पहुंची तो ‘फाल सीजन’ था जो पूरे वातावरण को एक जोश ,उत्साह से भर देता है।अमेरिका का पूर्वी भाग तांबई लाल ,पीला ,केसरी रंगॉ से भर जाता है। लगभग एक माह तक अद्भुत दृश्य होता है।

न्यू जर्सी स्टेट के यूनियन सिटी से लगभग १०० मील दूर हम ‘न्यू पालज’ मॅ फाल देखने गए। यह न्यूयार्क स्टेट मॅ है।आधे घंटे की ड्रा इव के बाद ही दोनों तरफ हरे-भरे घने पेडॉ से घिरे दृश्य आरम्भ हो गए  । रास्ता खाते-पीते,गाने सुनेते और सान्वी के साथ छोटी-छोटी बातॅ करते कब बीत गया पता ही नहीं चला और आंखॉ के सामने दूर पहाडियां दिखने लगीं…

कितनी बार न्यूयार्क की गगनचुम्बी इमारतॉ को खासकर न्यूयार्क टाइम्स की नई बनी इमारत को गर्दन पीछे की और झुका कर देखा।भला इतनी ऊंची इमारतॅ आंधी ,तूफान ,पानी और भूचाल के झॉके कैसे सहती हॉगी।’statue of liberty’ से लौटते हुए ‘एलिस आइलॅड ‘पर डूबते सूरजके रंगॉ में सालॉ पहले दूर देश से आए यात्रियॉ की नावॅ देख रही थी ।यहां की मिट्टी ने उन्हॅ जबतकर लिया । भले यातना के दौर से गुजरने के बाद आश्रय मिला हो लेकिन जो नितान्त पीछे छूट गये उनका अकेलापन क्या कम यातनाप्रद रहा होगा? भीतर भाव उमड्ने लगे ,एक प्रशन मथने लगा-इस देशनिकाले और अलग पङ्ने के पीछे कौन? क्या हमारी नीतियां नहीं,हमारी सोच नहीं?

दूसरी सभ्यता मॅ पूरी तरह खुल नहीं पाते हम पर फिर भी अपने ढंग से जीने को आजाद हैं।यही चीज रोकती है इधर। कोई किसी के फटे मॅ पैर नहीं डालता। सब अपनी -अपनी जिन्दगी जीते हैं।भारत की भांति दूसरॉ की जिन्दगी मॅ दखल नहीं देते। यहां एक प्रसिद्घ कहावत है’टू इच हिज आन’। यह एक ऐसा

देश है जहां बच्चे अपने मां-बाप की शिकायत स्कूल तथा अन्य संस्थाऑं मॅ भी कर सकते हैं और उन्हॅ जेल की हवा खिला सकते हैं।चुप रहकर मां-बाप की मारपीट नहीं सहगॅ।

पी.एच.डी. कर कोई यहां रेस्तरां खोल कर बैठा है हिन्दुस्तानी खाने का,पर…