कोविड -19 और सामाजिक आचार संहिता

दो -तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर एक संदेश घूम रहा था -अतिथि रिसकी भवः |जिस देश की संस्कृति है-अतिथि देवो भवः वहाँ ऐसा क्यों ? मन में हँसी ,क्रोध ,दुःख  ,निराशा सभी भावों का एक-एक कर उत्थान पतन हुआ |कल एक परिचिता ( मेरे घर से 200 मीटर की दूरी पर रहती हैं )  घर पर आईं ,मुझे कुछ  कागज उन्हें देने थे |मास्क पहन कर गेट खोला और अंदर आने का अनुग्रह किया |मास्क और gloves पहने हुए थीं पर  पहले तो वे कुछ झिझकी  फिर घर के भीतर ना जाकर बाहर बरामदे में ही कुर्सी पर स्प्रे कर के बैठ गईं |मैं  भी 4-5 फीट की दूरी पर कुर्सी खींच कर बैठ गई |उन्होंने अपना पर्स खोला  कि आप इसमें कागज डाल दीजिए |    कुछ भी खाने -पीने से मना कर दिया और कुछ देर बात-चीत  कर चली गईं |पहले जब भी वे मिलने आती थीं तो कॉफी का कप जरूर पीती थीं |उनके जाने के बाद तनु ( मेरी सहायिका ) ने उस कुर्सी को स्प्रे किया और धूप में रख दिया |एक परिचित ने बताया कि  उनके परिवार के दो सदस्य करीबी  शादी में कुछ खाए पिए बिना ही लौट आए अब वे रिश्तेदार नाराज हैं |पिछले लगभग तीन-चार महीने से मानव व्यवहार में परिवर्तन आ  रहा है |कोविड -19 के चलते अपनी सुरक्षा को देखते हुए यह परिवर्तन लक्षित हो रहा है |इस वायरस ने विश्व भर में बदलाव ला दिया है |सब कुछ सामान्य होने में महीनों या हो सकता है वर्षों लग जाए ||

जिंदगी के छोटे -छोटे क्षणों में हम आनंद खोजेगें |स्वास्थ्य ,आर्थिक स्थिति ,रहन-सहन और भी बहुत कुछ बदलेगा |आज संसार में जीने का एक नया तरीका है वर्चुअल या आभासी |दो दिन पूर्व एक निकट संबंधी के यहाँ होने वाली शादी में तैयार हो कर देश-विदेश से  अधिकांश संबंधियों ने आभासी भागीदारी की|हमारे कार्य करने का ढंग परिवर्तित हो गया है  |इस अल्पावधि में ही देखा है कि भरे हुए संगोष्टी कक्ष ( अनेक बार कॉलेज में विद्यार्थियों को जबरदस्ती पकड़ कर बैठाना पड़ता था )की अपेक्षा वेबनार गोष्ठियाँ अधिक सफल हो रही हैं | जब तक बहुत आवश्यक न हो तब तक शायद अपरिचतों के साथ घुल-मिल जाना अब  संभव नहीं -online से काम चल जाए तो ठीक है |

फिर क्या एकांत सुखमय है ? नहीं क्योंकि हम सन्यासी नहीं समाज में रह कर सबसे अलग -थलग कैसे जी सकते हैं? पर हम जानते हैं कि वस्तुओं को छूना ,दूसरों के साथ उठना-बैठना ,वातानुकूलित कमरे में सबके साथ सांस लेना हमारे लिए हानिकारक है |क्या होंगे फिर से खुलकर जीने के नियम ,कैसे खेल पाएंगे बच्चे फिर से खिलखिलाते हुए खेल के सूने  पड़े मैदानों  में ?उनके चेहरों की मासूमियत आप सबसे से यह सवाल बार-बार पूछ रही है |है क्या आपके पास इसका कोई उत्तर ? हर किसी की प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है लेकिन जिसने भी वर्ष 2020 को जिया है इसकी गहरी चोट जा नहीं सकती |हाथ मिलाना ,गले लगना ,मुहँ को छूना शायद नहीं करे पर हाथ धोने की क्रिया  जिंदगी भर जारी रहेगी |

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda did her graduation and post-graduation from Delhi university. She did her Ph.d. on 'sant kavya mai vidroh ka swar' from Delhi university. She has authored a number of books and published many travelogues.

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