कल कालेज से घर वापस लौटते हुए ड्राइवर ने अचानक मुझसे पूछा ,”मैडम क्या वास्तव में अच्छे दिन आने वाले हैं ?क्या मेरे कमरे का किराया कम हो जायेगा ?क्या मकानमालिक 7 rs. यूनिट के स्थान पर 3 rs.यूनिट के हिसाब से बिजली का बिल लेगा ?”मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था ।बडी-बडी योजनाऑ के द्वारा मोदी सरकार ‘सबके अच्छे दिन आने वाले हैं’ की सभी इच्छाऑ को आने वाले वर्षॉ में कैसे पूरा कर पायेगी यह देखना है ।
वर्षॉ से इसी रास्ते से कालेज जाते हुए अक्सर कमलानगर की लाल बत्ती पर जब गाडी रुक जाती है तो मेरी निगाहें बरबस स्कूल की दीवार के साथ एक बडे पेड के नीचे चबूतरे पर वर्षॉ से रहने वाले परिवार की और उठ जाती हैं ।एक दबंग सी महिला कभी खाना बनाते हुए ,कभी बच्चॉ को स्कूल के लिए तैयार करते हुए ,कभी कपडे धोते हुए ,कभी अपने पति से झगडते हुए दिख जाती है ।वहीं पास में ही एक साइकिल रिक्शा पर रक्खे हुए एक बडे से बक्से में उस परिवार का सामान ठूंसा रहता है –कपडे-लत्ते ,आटा,दाल ,चावल ,मसाले ,बिस्तर आदि । कई बार सोचती हूं कि उतर कर जाउं और उससे बात करुं कि वह कैसे सब मैनेज करती है ? बच्चे बडे हो रहे हैं ,रात के समय बडी होती बेटियॉ की दिल्ली जैसे शहर में रखवाली कैसे कर पाती है ?ये तमाम सवाल मुझे घेर लेते हैं ।गाडी आगे चल पडती है और मै मन को दिलासा देती हूं कि कोई बात नहीं अब अच्छे दिन आने वाले हैं।सब अच्छा ही होगा ।