महामारी कोरोना का संकट प्रतिदिन बढ़त पर है और इसके चलते पिछले तीन -चार दिन से व्हाट्स एप्स ग्रुप्स में home isolation , self care at home से जुड़े अनेकानेक संदेशों की भरमार है |राजनीति के दाँव -पेच भी जोरों पर हैं |एक दूसरे पर दोषारोपण हो रहा है |सरकारी अस्पतालों में स्थान नहीं तो प्राइवेट अस्पताल साधरण आदमी की पहुँच के बाहर है |कवि तुलसीदास के जीवनकाल में महामारी और अकाल दोनों का प्रकोप हुआ था |तुलसीकृत कवितवली में लिखा है –
‘ ऊँचे ,नीचे ,बीच के धनिक रंक ,राजा ,राय
नारि -नर आरत पुकारत सुनै न कोउ
कहैं एक एकन सों कहाँ जाइ का करी ?
यही स्थिति हमारी है जान है तो जहान है तो ठीक था पर अब जान भी और जहान भी दोनों में तालमेल बैठाना महंगा पड़ सकत है | अर्जुन को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीकृष्ण
द्वारा उच्चरित वाक्य -उठो पार्थ गाँडीव संभालों मुझे स्मृतियों के गलियारों में ढकेल देता है |वर्षों किरोड़ीमल महाविद्यालय में पढ़ाते हुए अक्सर कक्षा से पूर्व या दो कक्षाओ के अंतराल में स्टाफ रूम में मेरी व डॉ विद्या सिन्हा की अन्य मित्रों के साथ घर-परिवार-कॉलेज ,साहित्य ,राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय अनेक विषयों पर चाय पर चर्चा होती थी जिस पर घंटी की गूंज विराम लगा देती और हम अपना रजिस्टर पुस्तक आदि उठाते हुए एक-दूसरे को देखते हुए कहते -उठो पर्थ गाँडीव संभालों और फिर अपने उस गाँडीव से अपने विद्यार्थियों को निष्काम भाव से लक्ष्य भेद की शिक्षा देने में व्यस्त हो जाते |फल की इच्छा से ऊपर उठ कर कर्म करने में कार्यक्षमता को बढ़ाना पड़ता है |आज जब शिक्षा ,मीडिया ,साहित्य सर्जन ,अनुवाद ,सरकारी -गैर सरकारी प्रतिष्ठानों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सफलता का ध्वज लहराते अपने शिष्यों का परिचय मिलता है तो मैं और विद्या सिन्हा अपने इस आप्त वाक्य पर गर्वित होते हैं |आज के इस आपदकाल में जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार आपसी तकरार में डूबें हैं आवश्यकता है आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता |के इसी गाँडीव की |अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य का पूर्ण ध्यान रखने की ,मास्क पहन कर ,पर्याप्त सामाजिक दूरी बनाकर ,रोगक्षमता बढा कर इस आपदा का सामना करने के लिए कटिबद्ध होकर कहने की हम जीतेंगे |