घिर आओ बदरा रे घिर आओ न ।जून बीता ,जुलाई आधा बीतने को है पर आकाश के किसी कोने से बादल घिरते नजर नहीं आ रहे ।तपते दिन ,गर्म रातॅ ,गर्म हवा ,कटती बिजली सब दिमाग को और गरमा रहॅ हैं ।रोज सुबह उठ कर पहले खिड्की से बाहर झांकती हूं कि आकाश साफ है या बादलॉ से घिरा है ।फिर बाहर निकल कर पाती हूं कि पूर्व दिशा सुनहली हो रही है पुरवैया नहीं चल रही हवा भी बंद है ।आजकल मीडिया ने इतने सिंगर पैदा कर दिए पर कोई तानसेन नहीं कि मल्हार राग गाकर वर्षा को बुला ले ।
बालीवुड की ढेरॉ फिल्मॉ मॅ वर्षा के अनेकानेक गीत हैं F M रेडियो पर उन गीतॉ को बजाया भी जा रहा है पर लगता है बादल भी नई जेनेरेशन की भांति टेकसेवी हो गए हैं वे चाहते हैं कि ऍसी वेबसाइट बनाई जाए ,सोशल मीडिया एक्टिव हो जाए लाखॉ लोग उसे विजिट करॅ तो फिर वे बरसेंगे तो शुरूआत आज ही से करते हैं ।बरसो रे बदरा बरसो रे ,मेघा बरसो रे ।