कडकती सर्दी ने तीन महीनॉ तक मेरी सैर बन्द कर दी थी ।मौसम अब कुछ खुला और मन ने निश्चय कर लिया कि बस फिर से सुबह की सैर शुरु ।पहले दिन कुछ आलस आ रहा था पर निश्चय कहीं डगमगा न जाए इसलिए अच्छे से गर्म कपडे पहन कर चल पडी ।वस्तुत मैंने सुबह की व्यस्त दिनचर्या मॅ आधा घंटा सैर के लिए नियत कर रखा है ।खुले दिनॉ की भांति पार्क अभी भरा नहीं था ,गिनती के लोग ही सैर कर रहे थे ।कुछ परिचत चेहरॉ से हेलो-हाय हुई ।सैर करते हुए एक व्यकित के मोबाइल पर “कसमॅ वादे प्यार वफा सब वादॅ हैं वादॉ का क्या ” गाना सुनाई पडा तो कोई अन्य पास से गुजरा तो भजन बज रहा था ।मेरा मन भी मेरे साथ सैर करते-करते 70 के दशक मॅ पहुंच गया ।मेरा भाई एक छोटा सा जापानी ट्रांजिस्टर लाया था लगभग आज के स्मार्ट्फोन के बराबर के साइज का।बडे से रेडियो और बडे ट्रांजिस्टर के स्थान पर एकदम स्मार्ट ट्रांजिस्टर और कान मॅ लगा कर सुनने की सुविधा भी ।मजा आ गया ।हम दोनॉ मॅ आपस मॅ लडाई का दौर शुरु पर आंख मूंद कर चुपचाप गाने सुनने का बडा लुत्फ आता था ।आज मोबाइल “all in one’ है ।40 वर्ष पश्चात हाथ मॅ मोबाइल है जो एक साथ न जाने मेरी अनगिनत ख्वाहिशॉ को पूरा कर देता है ।नमो नमो तकनीक देवता ।मेंने भी अपना मोबाइल आन किया और हनुमान चालीसा सुनने लगी \