जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
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दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की 🙏