सप्ताह के अन्त मॅ ‘फाल ‘देखने का कार्यक्र्म बनाया।अतः मै,नीति और नन्हीं सान्वी जो एक सप्ताह मॅ ही घुल-मिल गई थी- ही गए। उत्तरी अमेरिका मॅ यह बहुत प्रसिध है।लगभग १६वीं शताब्दी से प्रचलित है।गर्मी समाप्त हुई और सर्दी बढ्ने लगती है।प्रकृति रंग बदलने लगती है-कहीं लाल ,कहीं पीला ,कहीं सुनहरा,कहीं सिंदूरी । ‘फाल’ का अर्थ है रंग परिवर्तन के पश्चात् पेडॉ के पत्तॉ का गिरना।हमारे देश मॅ जब पतझड आता है तो चारॉ तरफ पीले पत्तॉ का ढेर लग जाता है,जो मन को उदासी,अवसाद से भर देता है पर मन मॅ कहीं उछाह की किरण भी होती है। आने वाली ऋतु बसंत है जब आम्र के पेड मंजरियॉ से लद जायेंगे।असंख्य रंग-बिरंगे फूल खिलॅगे और वृक्षॉ पर नए पत्तॅ आयॅगे ।
इस बार जब मैं यहां पहुंची तो ‘फाल सीजन’ था जो पूरे वातावरण को एक जोश ,उत्साह से भर देता है।अमेरिका का पूर्वी भाग तांबई लाल ,पीला ,केसरी रंगॉ से भर जाता है। लगभग एक माह तक अद्भुत दृश्य होता है।
न्यू जर्सी स्टेट के यूनियन सिटी से लगभग १०० मील दूर हम ‘न्यू पालज’ मॅ फाल देखने गए। यह न्यूयार्क स्टेट मॅ है।आधे घंटे की ड्रा इव के बाद ही दोनों तरफ हरे-भरे घने पेडॉ से घिरे दृश्य आरम्भ हो गए । रास्ता खाते-पीते,गाने सुनेते और सान्वी के साथ छोटी-छोटी बातॅ करते कब बीत गया पता ही नहीं चला और आंखॉ के सामने दूर पहाडियां दिखने लगीं जिनमॅ अनेक रंगॉ के पत्तॉ वाले पेड थे। यह ’मिनीवाफज’ पहाडी थी । पहाडी रास्ता प्रारम्भ हो गया था। दोनॉ तरफ से कारॉ की आवाजाही हो रही थी। बीच-बीच मॅ हेलमेट पहने साइकिल सवार।पता चला कि आज बाइक रेस है।नीति ने GPS आन किया हुआ था , रास्ते का प्रिन्ट आउट भी था पर फिर भी रास्ता भूल गए। अन्ततः हम अपने गंतव्य पर पहुंचे ।दूर तक फैले खेत थे जिनमॅ छोटे -बडे pumpkin लगे थे। हमारे यहां के सीताफल से मिलते-जुलते पर उससे कुछ अलग नारंगी रंग लिए हुए।यहां pumpkinपिकिंग थी। खरीदने के लिए पर्यटक तोड रहे थे।हमने कुछ फोटो लीं और आगे बढे तो सेब के अनेक बगीचे थे ।हर प्रकार के सेब छोटे-छोटे पेडॉ पर लदे थे छोटे-बडे गोल्डेन सेब ,सुर्ख लाल रंग लिए सेब। पहाडी पर१००० फीट ऊपर ट्रेक्टर ट्राली पर बैठ कर ‘एप्पल पिकिंग ‘के लिए गए अर्थात अपने हाथॉ से पेडॉ से सेब तोड कर खरीद सकतॅ हैं । सान्वी को बहुत मजा आ रहा था।नन्हें-नन्हॅ हाथॉं मॅ बडे-बडे सेब भर कर onemore-onemore की आवाज लगाए जा रही थी।सेब खरीदे और खाए । बडा आनन्द आया।
यहां से फिर हम लौटे तो रास्ते मॅ ‘जेनकिन ल्यूकेन आर्चेडस ‘पर रूके। एक बहुत बडा स्टोर भी था,जहां खेतॉ की सभी ताजी सब्जियां भी उपलब्ध थीं। यहां ‘पम्पकिन पिकिंग’ और ‘कार्न पिकिंग’ भी थी ।दूर-दूर तक फैले मक्का के खेत थे। एक गीत की पंक्ति याद आ रही थी-’हरीथी मन भरी थी लाल मोती जडी थी’।हर नए शहर मॅ हम अपना शहर ,अपना भाव ढूंढ्ते हैं। बहुत अच्छा लग रहा था।बच्चॉ के खेलने के लिए पम्पकिन के आकार का एक बडा रबड का बाल बनाया हुआ था ।यहां कुछ देर बैठ कर खुली खिली धूप का आनन्द लिया,खाया पिया और चल पडे। यहां पिकनिक एरिया मॅ जगह-जगह अनेक लकडी के मेज-कुर्सी रखे रहतॅ हैं, जहां बैठ कर आप खा-पी सकते हैं।हमारे देश की भांति नहीं किअपनी चादर घर से ले जाकर जगह ढूंढ कर बिछा कर बैठ्ते हैं।सारा सुन्दर दृश्य आंखॉ के रास्ते मन मॅ बैठ गया था ।कुछ ही दिनॉ मॅ सारे पेडॉ के पत्ते ताम्बई से लल रंग के हो जायॅगे ऐसा लगेगा कि पूरे अमेरिका का यही रंग है। दो तीन सप्ताहन्त सब लोग फाल क आनन्द लॅगे और फिर अचानक नवम्बर की एक कुहासे भरी सुबह सारा दृ्श्य बदल जायेगा। सूने पेड पत्रविहीन ठूंठ् से तैयार हैं आने वाले कठिन बर्फीले संघर्षपू्र्ण दिनॉ के लिए सब प्रकृति का अनोखा रंग है,परिवर्तन है।जैसे जीवन उतार-चढाव से पूर्ण है,वैसे ही प्रकृति भी।