मै स्टाफ-रुम के कोने की गोल मेज हूं,
वर्षो से मुझे पेन्ट नही किया गया है,
पर इस वर्ष मेरा उद्धार हुआ है।
मै आज आपबीती नही सुना रही
यह मेरी गाथा है जो सुना रही हूं।
मै उत्तरी ध्रुव का ज्वालामुखी नहीं,
जो ऊपर से बर्फ से ढका हैऔर भीतर
से है लावा से भरपूर
मै तो पृथ्वी हूं,
पृथ्वी जो सब सहती है,
पृथ्वी जो सब सुनती है,
खुशियां बांटती है।
मैने भी अपने आसपास बैठने वालों के आंसुऑ के सैलाब पिए हैं,
हंसी व खुशी की किलकारियां भी सुनी हैं।
मुझ पर चाय के दौर बहुत चलते हैं
साथ मॅ फटाफट खाने के डिब्बे भी खुलते हैं,
समॉसॉ की प्लॅटॅ भी अक्सर खाली होती हैं,
पर आज तक किसी ने मुझे नहीं पूछा ।
जब तरह-तरह के व्यंजनॉ की
महक से मेरे अन्दर की भूख जागती है।
अक्सर जब मिठाई के डिब्बे खुलते हैं,
जब सुन्दर साडियॉ की तहें मेरे पास खोल कर
गुपचुप तरीकॉ से दिखाई जाती हैं,
तो मेरे भीतर भी ललक जागती है।
काश मैं भी इनमॅ से एक होती,
पर क्या करुं मैं तो एक गोल मेज हूं।
मैं अपने आस-पास बैठने वालॉ के
चेहरॉ को अच्छी तरह पहचानती हूं,
उनका इतिहास जानती हूं,
इनकी व्यथा बांटती हूं।
इनके बच्चॉ को मैंने बचपन से बडे होने तक जाना है।
उनके कोमल चेहरॉ को मैं जानती हूं,
पर आज मैं अपनी व्यथा के पर्दे खोल रहीं हूं।
कई बार मैं इनसे कुछ कहना चाहती हूं,
पर फिर चुप लगा जाती हूं।
जब मुझ पर गर्म-गर्म चाय गिर जाती है,
जब घंटी की तेज आवाज से
यह तेजी से रजिस्टर उठा कर
मुझे ठोकर लगा क्लास मॅ भागते हैं,
तब मैं इन्हॅ रोक कर कहना चाहती हूं,
मैं जड ही सही पर दिल रखती हूं।
मुझसे बेदर्दी से पेश मत आओ,
मुझे भी प्यार से सहलाओ
मैं स्टाफ रूम की गोल मेज हूं।