इस कमरे की खिडकी से
यह हिलता पेड नजर आता है ।
दूर कहीं पुलिस की
कार का सायरन बजता है,
साथ ही सान्वी की आवाज-
cop आया cop आया ।
दोपहर का समय है,
चारॉ और सन्नाटा छाया है।
हवा अत्यंत तेज है,
घर की दिवारॅ,पलंग ,
सब हिल-हिल उठते हैं।
ऐसा लगता है अचानक
भूकंप का झटका लगा है,
पर फिर हंसी आती है।
यहां भूकम्प आने पर भी
सब हिल-डुल कर
फिर टिक जाते हैं।
यह लकडी के घर ,
जहां हर आहट पर
आवाज गूंज उठती है,
जहां हर पल अकेला है।
यहां कोई आंसू पॉछने वाला नहीं ।
उल्टी हथेली से आंसू पॉछ,
अपने गम खुद पी,
व्यकित हर पल अकेला ही आगे बढता चलता है
बढता चलता है।