एक शनिवार शाम को हम सब एटलांटिक सिटी गए ।यह साउथ न्यूजर्सी मॅ ‘Atlantic Occean
पर बना एक लुभावना छोटा सा शहर है जहां कैसीनो की भरमार है।वीकएंड होने के कारण रास्ते भर बहुत भीड थी ।एडीसन से दो घंटे की यात्रा के बाद शाम को सात बजे के करीब हम “रिवेल रिर्सोट” मॅ पहुंचे ।चौदह मंजिले इस रिर्सोट मॅ हर मंजिल की अपनी पार्किंग है ।अन्दर अनेक रेस्टोरॅट, केसीनो ,रहने के कमरे तथा अन्य मनोरंजन के साधन हैं । काफी पीने के बाद बाहर निकले । समुद्र के किनारे तीन किलोमीटर की ‘बोर्डवाक ‘ करनी प्रारम्भ की ।सूर्यास्त हो रहा था ,समुद्र की उत्ताल तरंगे रंगमयी हो कर नाच रहीं थीं ।धीमी गति से बहती हवा और दूर से आती संगीत की मधुर लहरियां ने वातावरण को और मादक बना दिया था ।दूसरी और अनेक ‘केसीनो’ थे–ताजमहल ,बाली आदि ।दूर ‘पराडो’ की नियोन बत्तियां झिलमिला रहीं थीं ।सब कुछ बडा मनमोहक था।
आगे बढने पर दायीं और छोटी-छोटी दुकानॅ शुरु हो गई थीं जिनमॅ हर प्रकार की वस्तुऍ उपलब्ध थीं ।अनेक भारतीय इन दुकानॉ के मालिक हैं ।यहां कोई जादू के खेलॉ का आनन्द उठा रहा था तो कोई टेटू बनवा रहा था,कहीं हस्तरेखाऍ देखी जा रहीं थीं तो कहीं टैरेटकार्ड रीडिंग होरही थी ।खाने की ढेरॉ दुकाने ‘फनलकेक,आइसक्रीम ,पीत्जा ,सॅडविच ,बर्गर ,सलाद ,जूस, कोक ,पेप्सी आदि ।स्त्री-पुरुष-बच्चे सब खाने-पीने -घूमने मॅ मस्त थे ।सबसे रोचक दृश्य था ‘हाथ-गाडी’ जिसमॅ तीन लोग बैठ सकते थे । यह हाथ-गाडी ‘बोर्डवाक’ के एक कोने से दूसरे कोने तक ४० डालर मॅ पहुंचा सकती है । मुझे भारत मॅ पहाडी स्थानो पर चलने वाले रिक्शाऑ का ध्यान आया जिसे एक या दो कुली आगे से खींचते हैं । पहाडी रास्तॉ पर खींचते-खींचते वे पसीना-पसीना हो जाते थे लेकिन बैठने वाले अपना भार भूल उन पर लदे रहते थे ।अधिकांश स्थानॉ पर ये अब बन्द हो गयॅ हैं । यहां समतल धरातल पर एक व्यकित आगे से न खींच कर रिक्शा को पीछे से धक्का लगा रहा था ।समुद्र के किनारे कोई संगीत का कार्यक्रम हो रहा था ,लोग धुन पर थिरक रहे थे । असंख्य बत्तियॉ से जगमगाता पूरा शहर चमक रहा था । यहां दिन की बजाए शहर पूरी रात जागता रहता है ।हम ‘जानीवाकर’ रेस्टॉरॅट मॅ खाना खा कर कार्ट(हाथ-गाडी) मॅ बैठ कर वापस ‘रिवेल’ लौटे और कार मॅ बैठ कर वापस घर चल पडे । आंखॅ नींद से भारी हो रहीं थीं ,रात का एक बज रहा था पर सारा शहर जाग रहा था ।