आदर्श नारी -सीता

‘रामचरितमानस ‘ का अनेकों बार जीवन में पठन-पाठन किया है ।बचपन में ‘ सम्पूर्ण रामायण ‘ देखी थी पर कल ‘उत्तर रामायण’ का अंतिम episode मन को झकझोर गया ।सदियों से मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और गरिममयी जगतजननी सीता की गाथा जनमानस के ह्रदयों में अपना स्थान बनाए हुए है ,आशीर्वाद दिया जाता है सीता की भाँति सौभाग्यवती भव ।
सीता के जीवन की अनेक छवियाँ हैं – राजमहलों में पली सुकुमार वैदेही , दशरथ की पुत्रवधू ,रघुनन्दन की पत्नी बन वनों में विचरने वाली सीता ,अयोध्या की महारानी सीता और फिर बाल्मीकि के आश्रम में कठोर तपस्विनी ममतामयी वनदेवी ।सीता का वनदेवी रूप नारी की अदम्य जिजीविषा का प्रतीक है जो आश्रम में अपनी
सन्तान को जन्म दे कर निरंतर संघर्ष कर उन्हें स्वावलंबी संस्कारी और शिक्षित बनाती है ।जो प्रश्न मुझे मथ रहा है ,बैचेन कर रहा है -नारी की बार बार परीक्षा क्यों , आलोचना क्यों ,राजा के लिए अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए समाज की मोहर की आवश्यकता क्यों ।यह नारी की अस्मिता पर प्रहार है ।पति द्वारा राजधर्म की रक्षा हेतु निर्वासित सीता पिता के घर भी जा सकती थी पर वह स्वाभिमानिनी नहीं गई ।लव -कुश द्वारा वाल्मीकिकृत रामायण सुनने के पश्चात् पूर्ण सभा द्रवित हो उठती है पर प्रश्न कोई नहीं उठाता ।राजगुरु वशिष्ट भी अनुत्तरित हैं ।राजाराम पुनः लोकोपवाद से बचने के लिए सीता को सभा में उपस्थित हो शुद्धता की शपथ लेने की शर्त रखते हैं ।ये कहाँ तक न्याय संगत है ।कैसी विडम्बना पुत्रों का मोह भी श्री राम के कठोर चित को डिगा नहीं पाता ।सीता का शपथ ले सभा में पृथ्वी में समा जाना उसकी लज्जा नहीं सभ्य समाज पर एक तमाचा था । राजसभा स्तंभित है राम क्रोध कर रहें हैं पुत्र अश्रुपुरित दृष्टि से घटनाओं को घटित होते देख रहें हैं पर मेरा मन अभी भी अशांत है ।आख़िर ऐसा क्यों नारी क्यों बार बार अग्निपरीक्षा दे ??????

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda did her graduation and post-graduation from Delhi university. She did her Ph.d. on 'sant kavya mai vidroh ka swar' from Delhi university. She has authored a number of books and published many travelogues.

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