होली— याद आते हैं स्कूल में किए ग्रुप डांस के गीत के बोल “आयो री रितुराज आज ये होरी खेलन आयो ….उड्त गुलाल लाल भयो बादल केसर कीच मचायो”।उल्लास का पर्व होली धूम मचाता आता है ।सबको मस्त करता ।हंसते-गाते-नाचते बच्चे-युवा -बूढे सब जैसे पागल हो उठते हैं ।अनेकानेक रंगॉ से लिपे-पुते चेहरे ,पकवानो की महक ,भांग की ठंडाई सब को एक मस्ती के आलम में ले जाती है।यॉ तो फाल्गुन आते ही पूरा वातावरण महक उठता है ।बाग-बगीचे अनगिनत रंगॉ के फूलॉ से भर जाते हैं ,शीतल-मंद-सुगंधित हवा ठहरती -नाचती -ठुमकती चलती आती है,हॉठ अपनेआप गुनगुना उठते हैं ।कुछ पेड पत्रविहीन हो जाते हैं जैसे पलाश का ।पत्ता -पत्ता झर जाता है और पूरा पेड लाल रंग के पूलॉ से भर जाता है ।बरसॉ पहले देखे टी.वी के एक सीरियल मॅ नायिका अपने प्रेमी से बंसत के एक सुहाने दिन अनुरोध करती है–’जब-जब तुम मेरे घर आना फूल पलाश के ले आना “।कारण चाहे कुछ भी रहा हो पर फूलॉ से लदा पेड मन को मोह लेता है ।आम का पेड नए पत्तॉ और बौर से लदा अलग झूमता है ।हमारे देश मॅ पतझड और फिर बसंत और बसंत समाप्त होते -होते होली जैसे कह रही हो धूम मचा ले फिर तो गर्मी के तपते दिन आ रहॅ हैं ।
फाल मतलब पतझड।उतरी अमेरीका मॅ सितम्बर का महीना रंग-बिरंगे फूलॉ से भरा होता हैतो अक्टूबर के दूसरे सप्ताह के आते-आते कुछ पेड लाल तो कुछ तांबई रंग के पत्तॉ से भर उठते हैं ।अत्यंत मनमोहक द्र्श्य होता है ।पूरा वातावरण एक जोश उत्साह से भर जाता है ।सभी लोग इसका आन्नद उठाने जाते हैं ।तीन-चार सप्ताह के भीतर सब पत्ते झर जाते हैं और पत्रविहीन ठूंठ से पेड रह जाते हैंआने वाले ठंडे ,बर्फीले संघर्षपूर्ण दिनॉ की प्रतीक्षा मॅ ।हमारे देश से एकदम विपरीत ।पर इन्हीं दिनॉ वहां एक त्योहार मनाया जाता है-halloween day ।लोग अपने-अपने घरॉ के बाहर ‘पम्पकिन’ रखते हैं ,साथ ही भूत-प्रेत,चुडेल की शक्लॅ ,पुतले (काले ,सफेद,लाल रंग के वस्त्र पहनाकर या मास्क) सजा देते हैं ।सब विभिन्न प्रकार की विचित्र वेषभूषाएं धारण कर के इधर-उधर घूमते हैं ,पार्टी करते हैं ,बच्चे सबसे केंडी मांगते हैं एक अनोखा त्योहार ।मानव हर रितु को उल्ला्स के साथ मनाना चाहता है फिर वो चाहे बसंत हो या पतझड या फाल ।सभी को होली की बहुत -बहुत मुबारक ।