मां तुझे प्रणाम

मां तुझे प्रणाम कैसे करूं  ?

गुलाब सा चेहरा जो कांटॉ से घिरे रहने पर भी हंसता रहता है,

पर मन्द-मन्द मुस्कान की महक चहुं और बिखरती रहती है ।

पर आज तेरे चित्र पर फूल भी नहीं चढाना चाहती ,

क्यॉकि फूल मुरझा जाते हैं ,सुगंध हवा मॅ विलीन हो जाती है,

पर मां सदा रहती है ।

फिर क्या याद करूं  तुझे आज शब्दॉ से ।

कहते हैं शब्द कालातीत होते हैं ,

शब्द मरते नहीं ,शाश्वत हैं ।

ईश्वर के बाद तू ही है-अनन्त,असीम ।

हर किसी को ममता के आंचल मॅ छिपाने वाली

पर शब्दॉ से कैसे करूं तुझे प्रणाम,

क्यॉकि मैं कोई कालजयी कवि नहीं ।

मेरे शब्द मेरी सांसॉ के साथ विलीन हो जायेंगे,

पर मां तो रहेगी चिरकाल तक ।

मां तू तू है–अनुपम श्रद्धेय ।

एक ही इच्छा है-

मेरी अन्तिम बेला मॅ ,मेरी उखडती सांसॉ मॅ

मेरे उखडते स्वर मॅ

ईश्वर के नाम के साथ तेरा भी नाम हो ।

ओ मेरी सुख-दुख की संगिनी मां

तुझे प्रणाम शत-शत प्रणाम

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda did her graduation and post-graduation from Delhi university. She did her Ph.d. on 'sant kavya mai vidroh ka swar' from Delhi university. She has authored a number of books and published many travelogues.

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