मां तुझे प्रणाम कैसे करूं ?
गुलाब सा चेहरा जो कांटॉ से घिरे रहने पर भी हंसता रहता है,
पर मन्द-मन्द मुस्कान की महक चहुं और बिखरती रहती है ।
पर आज तेरे चित्र पर फूल भी नहीं चढाना चाहती ,
क्यॉकि फूल मुरझा जाते हैं ,सुगंध हवा मॅ विलीन हो जाती है,
पर मां सदा रहती है ।
फिर क्या याद करूं तुझे आज शब्दॉ से ।
कहते हैं शब्द कालातीत होते हैं ,
शब्द मरते नहीं ,शाश्वत हैं ।
ईश्वर के बाद तू ही है-अनन्त,असीम ।
हर किसी को ममता के आंचल मॅ छिपाने वाली
पर शब्दॉ से कैसे करूं तुझे प्रणाम,
क्यॉकि मैं कोई कालजयी कवि नहीं ।
मेरे शब्द मेरी सांसॉ के साथ विलीन हो जायेंगे,
पर मां तो रहेगी चिरकाल तक ।
मां तू तू है–अनुपम श्रद्धेय ।
एक ही इच्छा है-
मेरी अन्तिम बेला मॅ ,मेरी उखडती सांसॉ मॅ
मेरे उखडते स्वर मॅ
ईश्वर के नाम के साथ तेरा भी नाम हो ।
ओ मेरी सुख-दुख की संगिनी मां
तुझे प्रणाम शत-शत प्रणाम