भाग दो

दोनों ओर फार्म थे गेहूं ,मकई के खेत,सेबों के बाग ,टमाटर की फसल थी |अधिकांश खेतों में फसल कट चुकी थी |जगह जगह ‘पंपकिन’ के ढेर लगे थे |पंपकिन हमारे देश में पाए जाने वाले पीले रंग के सीताफल की तरह होता है |एक दिन बाद halloween day था (इसकी चर्चा फिर कभी )|अमेरिका में हर व्यक्ति  halloween day पर घर के बाहर इस पर  चित्रकारी करके रखता है | सानवी बहुत खुश हो रही थी ,हम सब ने ट्रैक्टर ट्रॉली में बैठ कर सैर करी  फोटो खींची और आगे चल दिए |मौसम अच्छा था ,धूप थी ,हल्की ठंड थी तापमान हमारे दिसंबर के प्रथम सप्ताह के दिन की भांति |

यहाँ से हम ‘लूरे’ की तरफ चले ,खेतों के मध्य से जाती चिकनी ,सपाट ,पतली सड़क पर एक घंटे की यात्रा के पश्चात ‘डेज़ इन ‘ पहुंचे |तरोताजा होकर हम अपनी मंजिल ‘लूरे केव्स ‘ की ओर बढ़े |रास्ते में ‘लूरे सिंगिंग  टॉवर ‘था |यह 117 फीट लंबा स्मारक है जिसमें 17 घंटे लगे हैं ,जहाँ बसंत से फाल सीजन तक दिन भर मुफ्त दर्शन तथा प्रार्थना सभा चलती रहती है |इसके पास ही लगभग एक एकड़ में खूबसूरत भव्य बाग था जिसके चारों ओर  आठ फीट ऊंची बाड़ थी |रहस्यमय कोहरे की परत इसे ओर  आकर्षक बना देती है |बीच -बीच में सङ्गीतमय फव्वारे ,छुपी हुई सुरंगें ,जहाँ -तहाँ  निखरे ताल ,रंग-बिरंगे पुष्प और बैठने के लिए बेंच जहाँ से आप इसका आनंद ले सकते हैं |आगे चले तो पूर्वी अमेरिका की सबसे प्रसिद्ध गुफाएं सामने थीं |यह न केवल अमेरिका का वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर का प्रसिद्ध पर्यटन गंतव्य है |एक घंटे  का टूर था ,चार बज रहे थे छह बजे बंद हो जाता है |अतः जल्दी-जल्दी टिकट ली |20 डॉलर प्रति व्यक्ति टिकट थी और अंदर  जाने के लिए लाइन में लग गए |केमरा लाकर में रख दिया क्योंकि अंदर ले जाने की अनुमति नहीं थी |हेड्फोन दिए गए |लिफ्ट से 260 फीट नीचे  उतरे तो सामने प्रकृति की अद्भुत संरचना देख कर अवाक रह गए |पक्के मार्ग बने थे,सारा स्थान 54 डिग्री के स्तर पर बना हुआ है,हर आयु का व्यक्ति आराम से चल सकता है ,व्हील चेयर से भी जा सकते हैं |स्थान-स्थान पर points बने थे जहाँ आप हेड्फोन का बटन दबा कर उस स्थान की संरचना के विषय में जान सकते   हो |पूर्ण रूप से प्रकाशित ,तापमान 21 डिग्री रखा जाता है |स्थान-स्थान पर कर्मचारी तैनात थे |  बड़े -बड़े खंड कहीं ऊपर से नीचे की ओर  लटकते खनिज पदार्थों से बने पारदर्शी स्तम्भ  ,तो कहीं नीचे से ऊपर को जाते स्तम्भ |ड्रीम लेक गहरी लगती है परंतु केवल बीस इंच गहरी है एकदम पारदर्शी ,स्वच्छ जल ,कहीं -कहीं पानी का भ्रम होता है पर पानी नहीं था |शायद इंद्रप्रस्थ में पांडवों के महल में ऐसी ही पारदर्शी संरचना को देख कर पानी समझ कर दुर्योधन ने अपने कपड़े समेटे होंगे ओर कहीं पानी इतना साफ कि  नीचे की  सपाट सतह भी चमक रही थी |इसी के मध्य विश्व के सबसे बड़े संगीत के वाद्य यंत्र ‘दि ग्रेट स्टेलापाइप आर्गन ‘की दहलाने वाली तथा मोहक ध्वनि सुन पड़ती है |ऐसा लगा कि चट्टाने भी गा  उठी हों ,चारों तरफ अद्भुत गूँज सुनाई पड़ती है |प्रकृति की यह संरचना विस्मयकारी है |हजारों -लाखों वर्षों में  बना होगा सब कुछ |कुछ स्थानों पर मोती ,स्नोबॉल और अंडाकार खंडों की संरचना थी जैसे  प्रकृति ने बड़े पत्थर के बर्तन में फ्राइड अंडे प्रस्तुत किए हों | कहीं चमकती चट्टानो की ढेरों परते जिसे देख कर लगता था जेसे प्रकृति ने ढेर सारी शालों को इकट्ठा जमा कर दिया हो ||

कुछ वर्ष पूर्व 2002 में उत्तराखंड में पिथौरागढ़ के पास ‘पाताल भुवनेश्वर ‘देखने गए थे उसकी याद आज कौंध रही थी |आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसकी खोज की थी |यहाँ पहले प्रकाश की व्यवस्था नहीं थी |मोमबत्ती या लालटेन लेकर नीचे जाते थे |प्रशासन  की तरफ से अब प्रकाश की व्यवस्था थी  | गाइड को साथ लेकर जाना आवश्यक है |मोटी लोहे की जंजीर पकड़ कर 100 फीट नीचे उतरे ॐ नमः शिवाय का मन ही मन जाप करते डर  लग रहा था |फिसलन भी थी पर नीचे उतर कर लगभग 100 फीट तक पृथ्वी के धरातल की ओर बढ़ते ही गए थे ,वहाँ कहीं जल की अजस्र धारें थी  तो कहीं अनेक आकार-प्रकार के पत्थर ,कहीं शिव की मूर्ति का निरंतर टपकते जल से अभिषेक रहा था तो कहीं त्रिदेव -ब्रह्मा ,विष्णु और महेश  स्थापित थे और निरंतर क्रम से उनका जलाभिषेक हो रहा था |गाइड था कि निरंतर सब कुछ बताता जा रहा था|पाँच पांडवों और द्रोपदी का भी उल्लेख किया |गाइड के अनुसार तैंतीस करोड़ देवी -देवताओं की मूर्तियाँ वहाँ हैं |स्कन्द पुराण के मानस खंड में इसका यथावत उल्लेख  मिलता है | मैं सोच रही थी कब से सुघर प्रकृति खनिज पदार्थों से इनको ये आकार प्रदान करती रही है -शायद सैंकड़ों वर्षों से |वहाँ सब कुछ पौराणिक धार्मिक और तोअमेरिका में वैसी ही संरचना पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण ,बुद्धि चकरा  रही थी ,द्वन्द्व चल रहा था धर्म और विज्ञान में |यही सब सोचते सोचते सँकरे मार्ग से बाहर या गए |कार और केरिज केरेवन का म्यूजियम देखा जहाँ 1725 से अब तक की बग्घी ,कार और विभिन्न पोशाकें रखी थीं |

 

शाम हो चली थी |घूम कर थक भी गए थे ,अमेरिका में डिनर टाइम जल्दी हो जाता है छह सात बजे ही |डाउन टाउन में एक इटेलीयन रेस्टोरेंट में गए |सभी स्त्री -पुरुष रंग -बिरंगी विभिन्न प्रकार की फेनसी ड्रेस पहनकर बड़े -बड़े हैट  लगा कर ‘हेलोवीन डे ईव  ‘ की पार्टी में मस्त थे |खाना खा कर होटल में वापस या गए |सुबह फिर निकलना था |

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda did her graduation and post-graduation from Delhi university. She did her Ph.d. on 'sant kavya mai vidroh ka swar' from Delhi university. She has authored a number of books and published many travelogues.

9 thoughts on “भाग दो

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