दिल ढूंढ्ता है फिर वही फुरसत के ..

एक दिन कहीं से वापस आते हुए अचानक स्वाति ने पूछा कि आपको आज का सुपरसानिक युग अच्छा लगता है या पहले की स्लो जिन्दगी । उस समय मेंने उत्तर दिया कि सोच कर बताऊंगी ए। घर आ कर भी यह प्रशन मन को मथता रहा ।पहले क्लास मॅ कहती थी कि मन की गति सबसे तीव्र है पर अब पल भर मॅ ही हजारॉ किलोमीटर दूर बे भर.मॅ ही हजारॉ मील दूर बैठै बच्चॉ से स्काइप पर आमने -सामने बात हो जाती है ।पहले गाया जाता था–मेरे पिया गए रंगून वहां से आया टेलीफून तुम्हारी याद सताती है पर अब चौबीस घंटे जब चाहो अपनॉ से बात कर लो ।रास्ते भागते लोंगॉ, कारॉ ,बसॉ ,बाइक आदि से अटॅ हैं ।किसी के पास समय नहीं है ,हर कोई जल्दी मॅ है ।sky is the limit अच्छा आदर्श वाक्य है पर किसी को फुरसत नहीं किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने की,किसी मासूम के आंसू पॉछने की, उगते सूर्य को निहारने की,झरती चांदनी का आन्नद लेने की ,बासन्ती बयार को महसूस करने की ,आम के पेड कब मंजरियॉ से लद गए और कब आम पक कर लटकने लगे उन्हॅ देखने की,कोयल की कूहक सुनने की,अमलतास और गुलमोहर के झरते फूलॉ  के  मखमल पर चलने की । असंख्य ऍसी बातॅ हैं जो हम करना चाहते हुए भी नहीं कर पा रहॅ हैं ।  ऍसा नहीं है कि मुझे यह युग अच्छा नही लगता है पर…………

मुझे बहुत याद आती उन लम्बी गर्म दोपहरॉ की ऊंची छतॉ वाले ठंडे कमरॉ मॅ बैठ कर घंटॉ नल की धार के नीचे ठंडे किये हुए तरबूज को खाना और रेडियो पर गाने सुनना ।रात को पानी से ठंडी की छत पर खुले आसमान के नीचे चारपाई पर लगे बिस्तरॉ पर लेट कर आकाश मॅ देर तक तारॉ को  निहारना अचानक घिर कर आए बादलॉ से होने वाली बरसात मॅ गीले होकर जल्दी से बिस्तर को समेट्ना और भागना ।

सच कहां खो गया सब जीवन की इस सुपरसानिक युग की दौड मॅ ।बार-बार गीत याद आता है–दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन…

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Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda

Dr. Kiran Nanda did her graduation and post-graduation from Delhi university. She did her Ph.d. on 'sant kavya mai vidroh ka swar' from Delhi university. She has authored a number of books and published many travelogues.

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