पिछले रविवार बुशकिल फाल्स जाने का कार्यक्रम बना ।यह पॅसिलवेनिया के मनोरम स्थानॉ मॅ से एक है ,घने देवदार के पेडॉ से घिरे पोकोनो पहाडॉ के मध्य आठ झरने हैं ।एडीसन से दो घंटे की ड्राइव पर ‘पोकोनो मांउटेन’ मॅ स्थित है।गर्मी थी इसलिए सुबह जल्दी ही निकल गए ।पिकनिक के लिए सॅडविच,कोल्ड ड्रिन्क ,ठंडा पानी ,खाना ,फल ,बिस्कुट नमकीन ,चिप्स आदि रख लिए थे । न्यू जर्सी पार कर  जैसै ही पेन्सिनवेलिया मॅ प्रवेश किया  दोनो तरफ पहाडियां शुरू हो गई ।सॅडविच खाते, गाने सुनते ग्यारह बजे हम बुशकिल फाल्स पहुंच गए ।भाई के बेटे अमित का भी परिवार के साथ आने का कार्यक्रम था जो किसी कारण से रद्द हो गया था ।गाडी पार्क कर टिकट ली  जो प्रति व्यक्ति गयारह डालर थी ।

चारॉ और घना जंगल है। अनेक प्रकार के जंगली जानवर यहां पाए जाते हैं जिनमॅ प्रमुख -भालू, लोमडी ,खरगोश ,गिलहरी आदि हैं ।सर्वप्रथम म्यूजियम देखा जहां इन सब जानवरॉ को दिखाया गया था ।इसके बाद झरने की और जाने का रास्ता था ।चार रास्ते थे जो विभिन्न रंगॉ से अंकित थे–

हरा-जो मुख्य झरने तक १५ मिनट मॅ पहुंचा देता है पर इस पर समतल स्थान नहीं है सब सीढियां ही हैं ।

पीला-जो मुख्य झरने तक ४५ मिनट मॅ पहुंचाता है रास्ते मॅ अत्यंत सुन्दर दृश्य हैं ।

नीला–जो मुख्य झरने…

कल ४ जुलाई थी-अर्थात  अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस ।सबकी छुट्टी थी  ।हम लोग सुबह९ बजे ही तैयार हो कर अमेरिका की पुरानी राजधानी फिलाडेलफिया के लिए चल दिए  ।राष्ट्रीय अवकाश था ,इसलिए सडकॉ पर कारॉ की आवाजाही कम थी ।हम लगभग दो घंटे के भीतर शहर मॅ प्रवेश कर गए ।ढेरॉ पर्यटक दिखाई पड रहे थे ।जगह-जगह पुलिस थी ,काफी रास्ते बन्द थे विशेष रूप से  ‘नेशनल कांसटीट्युशन सॅटर, लिबर्टी बेल ,इंडीपेन्डेन्स माल ,बॅजमिन फ्रेंकलिन म्युजियम आदि ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र मॅ पर्याप्त सुरक्षा कर्मी तैनात थे ।बडी कठिनाई से पार्किंग मिली ।६वीं स्ट्रीट से परेड निकलनी थी ।हम उधर ही चल पडे ।

सडक के दोनो और लोग खडे थे -स्त्री,पुरूष -बच्चे हाथ मॅ अमेरिका का राष्ट्रीय ध्वज लिए ।परेड छोटी सी थी बैंड बजाते बच्चे,’विटेंज कार’,नृत्य करते गाते लोग,पर बडी रंग-बिरंगी ।कभी चलते -कभी रूकते कभी बैठते एक बजे इंडीपॅडेन्स माल मॅ पहुंचे ।लिखा था ‘आज अमेरिका का ‘हैप्पी बर्थ डे’ है सब गोल्डेन पेस्ट्री खा कर जाए’ ।शो चल रहे थे ,लम्बी पंक्तियां लगी थीं ।हमने भी ‘पेस्ट्री’ खाई और आगे चल पडे ।बाहर धूप काफी तेज…

शुक्रवार दोपहर को नीति का फोन आया ५ बजे तैयार रहना ‘मेटाचन’(न्यू जर्सी का एक नगर) मॅ ग्रीक फेस्टीवल है चलॅगे । हम सब ४५ मिनट की ड्राइव के बाद वहां पहुंचे । ग्रीक चर्च की तरफ से लगे इस फेस्टीवल मॅ ग्रीक संस्कृति की पूरी झलक मिली ।न्यू जर्सी मॅ रहने वाले ग्रीकवासीयॉ ने इसे सफल बनाने मॅ कोई कसर नहीं छोडी थी । टिकट ले कर अन्दर प्रवेश किया ।घुसते ही एक तरफ बच्चॉ के लिए मनोरंजक खेल ,कॅडी,आइसक्रीम ,केक ,पेस्ट्री के स्टाल थे तो दूसरी तरफ ग्रीक की रंग-बिरंगी पोशाकॉ,

पर्स ब्रेसलेट,माला,जूतॉ के स्टाल थे ।आगे बढने पर ‘कुकिंग शो’ चल रहा था,एक ग्रीक ‘chef’ग्रीक व्यंजनॉ को बना रहा था । उसकी रसोई पूरी तरह सजी थी ।’डिश’ बनाने के बाद सुन्दर वेट्रेस ट्रे मॅ रख कर आस-पास कुर्सियॉ पर बैठे लोगॉ को चखा रही थी ।अधिकांश व्यंजनॉ मॅ ’एलकोहल ’का प्रयोग था।

संगीत की मधुर ध्वनि अपनी और बुला रही थी ।मुड कर देखा तो पाया कि सजी-धजी ग्रीक लडकियां किसी ग्रीक लोकगीत पर गोलाकार नृत्य कर रही थी ।नाच की समाप्ति पर सबने तालियां बजा कर उनका प्रोत्साहन किया ।तत्पश्चात उन्हॉने दर्शकॉ को अपने साथ नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया ।संगीत की धुन फिर बजने लगी,बच्चे और उनकी माताऍ ताल से ताल …

इस कमरे की खिडकी से

यह हिलता पेड नजर आता है ।

दूर कहीं पुलिस की

कार का सायरन बजता है,

साथ ही  सान्वी की आवाज-

cop आया cop आया ।

दोपहर का समय है,

चारॉ और सन्नाटा छाया है।

हवा अत्यंत तेज है,

घर की दिवारॅ,पलंग ,

सब हिल-हिल उठते हैं।

ऐसा लगता है अचानक

भूकंप का झटका लगा है,

पर फिर हंसी आती है।

यहां भूकम्प आने पर भी

सब हिल-डुल कर

फिर टिक जाते हैं।

यह लकडी के घर ,

जहां हर आहट पर

आवाज गूंज उठती है,

जहां हर पल अकेला है।

यहां कोई आंसू पॉछने वाला नहीं ।

उल्टी हथेली से आंसू पॉछ,

अपने गम खुद पी,

व्यकित हर पल अकेला ही आगे बढता चलता है

बढता चलता है।…

हार्वर्ड स्कवायर की एक शाम हमेशा याद रहेगी ।। आठवॅ हिन्दी  सम्मेलन  मॅ  हिस्सा लेने के लिए न्यूयार्क आयी थी । नीति ( अपनी बडी बेटी ) के पास ठहरी थी।सम्मेलन शुरू होने मॅ अभी कुछ दिन शेष थे । अतः घूमने  का कार्यक्रम बना। पहले हम लोग ‘फ्लोरिडा’ गये और वहां से लौटने के बाद  ’बोस्टन’ गए । सुबह की फ्लाइट से स्वाति ने पहुंचना था ।उसे हमने एयरपोर्ट से ही ले लिया ।न्यू जर्सी से लगभग ५ घंटे की ड्राइव है । दो घंटे के बाद ‘रोड आइलॅड’ रूक कर नाशता किया । स्वाति कुछ फ्रेश हुई  । १२ बजे के करीब हमलोग बोस्ट्न पहुंचे  ।नीति ने हिल्टन होटल मॅ पहले ही कमरे बुक करा दिए थे ।अतः कोई समस्या नहीं हुई ।कुछ देर आराम करने के बाद बोस्टन घूमने चले ।

‘बोस्टन’ मेस्चस्टस (उत्तरी अमेरिका का एक राज्य है) की राजधानी है और अमेरिका के पुराने शहरॉ मॅ एक है। यह राजनीतिक और सामजिक परिवर्तन की गतिविधियॉ का केन्द्र रहा है ।इस शहर ने अमेरिका के विज्ञान,इंजीनियरिंग,संस्कृति और समाज को बनाने मॅ सहायता दी है । विश्व की श्रेष्ठतम शैक्षिक संस्थाऍ यहां है ।यहां अधिकांश नौकरियां धन ,स्वास्थय ,सुरक्षा,शिक्षा आदि से जुडी हैं ।विश्व से लाखॉ लोग  शैक्षिक,सांस्कृतिक,खेल सम्बंधी गतिविधियॉ मॅ हिस्सा लेने और व्यापार करने आते हैं।सभी…

सप्ताह के अन्त मॅ ‘फाल ‘देखने का कार्यक्र्म बनाया।अतः मै,नीति और नन्हीं सान्वी जो एक सप्ताह मॅ ही घुल-मिल गई थी- ही गए। उत्तरी अमेरिका मॅ यह बहुत प्रसिध है।लगभग १६वीं शताब्दी से प्रचलित है।गर्मी समाप्त हुई और सर्दी बढ्ने लगती है।प्रकृति रंग बदलने लगती है-कहीं लाल ,कहीं पीला ,कहीं सुनहरा,कहीं सिंदूरी । ‘फाल’ का अर्थ है रंग परिवर्तन के पश्चात् पेडॉ के पत्तॉ का गिरना।हमारे देश मॅ जब पतझड आता है तो चारॉ तरफ पीले पत्तॉ का ढेर लग जाता है,जो मन को उदासी,अवसाद से भर देता है पर मन मॅ कहीं उछाह की किरण भी होती है। आने वाली ऋतु बसंत है जब आम्र के पेड मंजरियॉ से लद जायेंगे।असंख्य रंग-बिरंगे फूल खिलॅगे और वृक्षॉ पर नए पत्तॅ आयॅगे ।

इस बार जब मैं यहां पहुंची तो ‘फाल सीजन’ था जो पूरे वातावरण को एक जोश ,उत्साह से भर देता है।अमेरिका का पूर्वी भाग तांबई लाल ,पीला ,केसरी रंगॉ से भर जाता है। लगभग एक माह तक अद्भुत दृश्य होता है।

न्यू जर्सी स्टेट के यूनियन सिटी से लगभग १०० मील दूर हम ‘न्यू पालज’ मॅ फाल देखने गए। यह न्यूयार्क स्टेट मॅ है।आधे घंटे की ड्रा इव के बाद ही दोनों तरफ हरे-भरे घने पेडॉ से घिरे दृश्य आरम्भ हो गए  । रास्ता खाते-पीते,गाने सुनेते और सान्वी के साथ छोटी-छोटी बातॅ करते कब बीत गया पता ही नहीं चला और आंखॉ के सामने दूर पहाडियां दिखने लगीं…

कितनी बार न्यूयार्क की गगनचुम्बी इमारतॉ को खासकर न्यूयार्क टाइम्स की नई बनी इमारत को गर्दन पीछे की और झुका कर देखा।भला इतनी ऊंची इमारतॅ आंधी ,तूफान ,पानी और भूचाल के झॉके कैसे सहती हॉगी।’statue of liberty’ से लौटते हुए ‘एलिस आइलॅड ‘पर डूबते सूरजके रंगॉ में सालॉ पहले दूर देश से आए यात्रियॉ की नावॅ देख रही थी ।यहां की मिट्टी ने उन्हॅ जबतकर लिया । भले यातना के दौर से गुजरने के बाद आश्रय मिला हो लेकिन जो नितान्त पीछे छूट गये उनका अकेलापन क्या कम यातनाप्रद रहा होगा? भीतर भाव उमड्ने लगे ,एक प्रशन मथने लगा-इस देशनिकाले और अलग पङ्ने के पीछे कौन? क्या हमारी नीतियां नहीं,हमारी सोच नहीं?

दूसरी सभ्यता मॅ पूरी तरह खुल नहीं पाते हम पर फिर भी अपने ढंग से जीने को आजाद हैं।यही चीज रोकती है इधर। कोई किसी के फटे मॅ पैर नहीं डालता। सब अपनी -अपनी जिन्दगी जीते हैं।भारत की भांति दूसरॉ की जिन्दगी मॅ दखल नहीं देते। यहां एक प्रसिद्घ कहावत है’टू इच हिज आन’। यह एक ऐसा

देश है जहां बच्चे अपने मां-बाप की शिकायत स्कूल तथा अन्य संस्थाऑं मॅ भी कर सकते हैं और उन्हॅ जेल की हवा खिला सकते हैं।चुप रहकर मां-बाप की मारपीट नहीं सहगॅ।

पी.एच.डी. कर कोई यहां रेस्तरां खोल कर बैठा है हिन्दुस्तानी खाने का,पर…

मै स्टाफ-रुम के कोने की गोल मेज हूं,

वर्षो से मुझे पेन्ट नही किया गया है,

पर इस वर्ष मेरा उद्धार हुआ है।

मै आज आपबीती नही सुना रही

यह मेरी गाथा है जो सुना रही हूं।

मै उत्तरी ध्रुव का ज्वालामुखी नहीं,

जो ऊपर से बर्फ से ढका हैऔर भीतर

से है लावा से भरपूर

मै तो पृथ्वी हूं,

पृथ्वी जो सब सहती है,

पृथ्वी जो सब सुनती है,

खुशियां बांटती है।

मैने भी अपने आसपास बैठने वालों के आंसुऑ के सैलाब पिए हैं,

हंसी व खुशी की किलकारियां भी सुनी हैं।

मुझ पर चाय के दौर बहुत चलते हैं

साथ मॅ फटाफट खाने के डिब्बे भी खुलते हैं,

समॉसॉ की प्लॅटॅ भी अक्सर खाली होती हैं,

पर आज तक किसी ने मुझे नहीं पूछा ।

जब तरह-तरह के व्यंजनॉ की

महक से मेरे अन्दर की भूख जागती है।

अक्सर जब मिठाई के डिब्बे खुलते हैं,

जब सुन्दर साडियॉ की तहें मेरे पास खोल कर

गुपचुप तरीकॉ से दिखाई जाती हैं,

तो मेरे भीतर भी ललक जागती है।

काश मैं भी इनमॅ से एक होती,

पर क्या करुं मैं तो एक गोल मेज हूं।

मैं अपने आस-पास बैठने वालॉ के

चेहरॉ को अच्छी तरह पहचानती हूं,

उनका इतिहास जानती हूं,

इनकी व्यथा बांटती हूं।

इनके बच्चॉ को मैंने बचपन से बडे होने तक जाना है।

उनके कोमल चेहरॉ को मैं जानती हूं,

पर आज मैं अपनी व्यथा के पर्दे खोल रहीं…

आज सुबह जब बाहर देखा तो सूरज की किरणॉ को छ्न-छ्न कर पत्तॉ मे से आते

पाया ।मन खिल उठा और अचानक एक कवि की कविता याद आई–

“मैने सूरज की आंखॉ मे झांक कर कहा

मुझे तुम अपना जैसा बना लो

मुझे सबकी जीवन की रोशनी बना दो

सूरज की सुबह की किरणॉ ने तत्काल कहा

पहले जलती हुई आग का गोला बनो

स्वयं को जलाओ

अपने अहं अपनी इच्छाऑ को भस्म करो

फिर मेरे पास शान्त समुद्र की भांति आओ

मै तुम्हे वह बनाऊगा जिसने मुझे बनाया है।’

सोचने लगी वह कितना महान है जिसने पूरा विश्व बनाया है…