सबको ईद मुबारक ।कल दूज का चांद दिखते ही ईद मुबारक की धूम मच गई ।ईद भाईचारे ,मधुरता ,मित्रता और खुशियॉ का त्योहार है ।हल्की-हल्की बौछारॉ के साथ आज की सुबह तीज का त्योहार भी अपने साथ लेकर आई ।दोनो त्योहार मॅहदी ,चूडी ,रंग-बिरंगे नये कपडे ,मिठाई , पकवानॉ की महक चारॉ और फैला देते है ।कहीं नमाज के बाद गले मिल कर मीठी सॅवई खायी जा रहीं हैं तो कहीं घेवर खाकर झूले पर पींग बडाई जा रही है–”सावन के झूले पडे”।…

रविवार १ जुलाई २०१२ को मोरगेनविली न्यू जर्सी मॅ ‘हिन्दुअम्रेरिकन टेम्पल एन्ड कल्चर सॅटर’ मॅ श्री कृष्ण मंदिर मॅ मूर्तियॉ की प्राण प्रतिष्ठा और महाकुम्भाभिषेकम का विशाल आयोजन हुआ । शुक्रवार २८ जून से ही प्रारम्भ हुए  उत्सव ४जुलाई को समाप्त हुए ।इस मंदिर मॅ प्रधान मूर्ति भगवान गुरूवायूरप्प्न की है पर इसके साथ ही गणेश जी,बालाजी और श्रीदेवी व भूदेवी,शिव और अम्बिका , सत्यनारयण, कृष्ण,दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती,हनुमान आदि देवी-देवताऑ तथा नवग्रहॉ की मूर्तियॉ को भी स्थापित किया गया है ।सारी मूर्तियां ग्रेनाइट की बनी हैं तथा तमिलनाडु के मूर्तिकारॉ ने इन्हॅ बनाया है ।

यह मंदिर ४० एकड मॅ बना है ।ऊपर के तल पर मंदिर है तो निचले तल पर विभिन्न अवसरॉ पर प्रयोग किये जाना वाला कक्ष है जिसमॅ सब प्रकार की सुविधाऍ हैं ।गोशाल का निर्माण किया जा रहा है ।मई के महीने मॅ मूर्तियॉ को पहनाये जाने वाले वस्त्रॉ तथा आभूषणॉ तथा पूजा के लिए चांदी के बरतनॉ की जनता के लिए प्रदर्शनी लगाई गई जिससे लोग उन्हॅ देख भी पायॅ और अगर वे किसी का भी प्रयोजक बनना चाहॅ तो  ऐसा कर सकॅ ।

इस सात दिन के कार्यक्रम मॅ हवन ,पूजा, भजन गायन ,शलोक उच्चारण,कत्थक -ओडिसी,भारतनाट्यम -कुचीपुडी नृत्य ,सितारवादन…

गढ मुत्तेशवर मॅ गंगा किनारे नवम्बर के कार्त्तिक माह मॅ लगने वाले मेले मॅ बचपन मॅ हर वर्ष जाते थे ।सबसे बडा आकर्षण होता था चांदनी  रात मॅ नाव की सैर करना ।जब-जब सुमित्रानन्दन पंत की कविता नौका-विहार पढती या पढाती हूं तो मन झट से  बचपन मॅ पहुंच जाता है ।लहरॉ पर झूमती नावॅ,चारॉ और छिटकी चांदनी ,मीठे स्वरॉ मॅ गूंजते गीत ,नाविक के पतवार खेने की आवाज सब अलौकिकता का समां बांध देता था ।आज जब princton मॅ  Canoeing के लिए जाने का कार्यक्रम बना तो तन-मन कुछ उलझन मॅ था क्या है यह नाव की सैर या कुछ और क्यॉकि यह मेरा पहला अनुभव होगा ।

खैर गंतव्य स्थान पर पहुंचे ।मौसम अच्छा था ।$25 प्रति घंटा के हिसाब से एकCanoe किराए पर ली ,लाइफ बेल्ट पहनी और तीन पतवार लिए ।पानी 10 फीट गहरा था ।इसलिए अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो उसके लिए हम ही जिम्मेवार थे इस प्रकार के एक पेपर पर साइन कर के हमने दिए ।इसमॅ चार लोग बैठ सकते हैं अगले कोने मॅ मैं पतवार संभाल कर बैठी और पिछले कोने पर रोहित बीच मॅ नीति ।असली काम पिछले कोने वाले का हीथा ।मैंने तो पतवार पहली बार ही ली थी ।बीच -बीच मॅ नीति चलाती रही ।सान्वी को बडा मजा आरहा था ।उसको भी एक बार चलाने को दिया ।…

४ जुलाई को अमेरिका का Independence day था ।सभी छुट्टी के mood मॅ थे ।हम भी सुबह-सुबह पिकनिक का सारा सामान इकट्ठा कर pocono mountains की तरफ चल पडे ।इरादा था कि Lake Harmony के किनारे पिकनिक करॅगे । रास्ते मॅ प्रोग्राम बना क्यॉ नहीं पास के Pocono International Raceway “The Tricky Triangle” पर जा कर कार रेस देखी जाए ।2013 के सीजन की रेस सप्ताहन्त मॅ होने जा रही थी ।Pocono mountains पॅसिलवेनिया स्टेट मॅ हैं ।हाईवे बहुत सुन्दर है,दोनॉ तरफ जंगल ,तेजी से भागती कारॅ ,कई कारॉ के पीछे बोट बंधी हैं कई RV (जिसे हम चलता-फिरता घर भी कह सकतॅ हैं ) भी हैं ।पहाडी रास्ता शुरु हो गया पर पहाड बहुत ऊंचे नहीं। सड्क बडी साफ-सुथरी ,मजबूत रास्ता सीधा है घुमावदार नहीं ।कार की खिड्कियां खोल कर स्वच्छ हवा के ठंडे झॉकॉ का आननद लिया ।रेसकोर्स दिखाई पडने लगा ।विशाल पार्किंग थी ।जगह-जगह  वालॅटियर खडे थे ।कार पार्क कर हम रेसकोर्स की तरफ चले ।आज कार रेसिंग की प्रेक्टिस थी इसलिए कोई टिकट नहीं थी ।The Tricky Triangle का विशाल स्टेडियम है ।अन्दर घुसते ही बच्चॉ के लिए खेलने का सुन्दर स्थान है।कार रेस शुरु होने जारही थी ।हमने…

एक दिन कहीं से वापस आते हुए अचानक स्वाति ने पूछा कि आपको आज का सुपरसानिक युग अच्छा लगता है या पहले की स्लो जिन्दगी । उस समय मेंने उत्तर दिया कि सोच कर बताऊंगी ए। घर आ कर भी यह प्रशन मन को मथता रहा ।पहले क्लास मॅ कहती थी कि मन की गति सबसे तीव्र है पर अब पल भर मॅ ही हजारॉ किलोमीटर दूर बे भर.मॅ ही हजारॉ मील दूर बैठै बच्चॉ से स्काइप पर आमने -सामने बात हो जाती है ।पहले गाया जाता था–मेरे पिया गए रंगून वहां से आया टेलीफून तुम्हारी याद सताती है पर अब चौबीस घंटे जब चाहो अपनॉ से बात कर लो ।रास्ते भागते लोंगॉ, कारॉ ,बसॉ ,बाइक आदि से अटॅ हैं ।किसी के पास समय नहीं है ,हर कोई जल्दी मॅ है ।sky is the limit अच्छा आदर्श वाक्य है पर किसी को फुरसत नहीं किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने की,किसी मासूम के आंसू पॉछने की, उगते सूर्य को निहारने की,झरती चांदनी का आन्नद लेने की ,बासन्ती बयार को महसूस करने की ,आम के पेड कब मंजरियॉ से लद गए और कब आम पक कर लटकने लगे उन्हॅ देखने की,कोयल की कूहक सुनने की,अमलतास और गुलमोहर के झरते फूलॉ  के  मखमल पर चलने की । असंख्य ऍसी बातॅ हैं जो हम करना चाहते हुए भी नहीं कर पा रहॅ हैं ।  ऍसा नहीं है कि मुझे यह युग अच्छा नही लगता है पर…………

मुझे बहुत याद आती उन लम्बी गर्म दोपहरॉ की ऊंची छतॉ वाले ठंडे कमरॉ मॅ बैठ कर घंटॉ नल की धार के नीचे ठंडे किये हुए तरबूज को खाना और रेडियो पर गाने सुनना ।रात को पानी…

मानव जाति दुविधा मॅ है,पथ कौन सा उत्तम है

यह वह नहीं जानती

एक पथ है घृणा ,वैमनस्य,वर्ग संघर्ष ,पतन

आतंकवाद भय ,जातिवाद,बर्बरता का

धर्म के नाम पर दुहाई दी जाति है यहां ।

एक दूसरा पथ है

वह है मिलन,शांति ,एकता, प्यार की बांट का,

खिले हुए मनॉ का ,जीवन का ।

इस दूसरे पथ पर गति है ,निरंतरता है

सिथरता का दूर-दूर तक अंदेशा नहीं ।

जीवन का दूसरा नाम चलना है , यही सत्य है ।

विश्व एक स्वर से पुकारता है-

हमॅ युद्ध नहीं शांति चाहिए,

हमॅ वैर नहीं प्यार चाहिए,

हमॅ भय नहीं जीवन चाहिए,

हमॅ अंधकार नहीं  प्रकाश चाहिए

प्रकाश चाहिए ।

गति चाहिए अवरोध नहीं ,संशय नहीं

आत्मविश्वास चाहिए,

जीने का अधिकार चाहिए

उठो संशय के रेत के कगारॉ को तोड डालो ।

बनाओ एक पुख्ता नींव

जो प्रेम व शांति की हो

विश्व प्रेम की हो

एकता  की हो

एकता की हो ।…

एक शनिवार शाम को हम सब एटलांटिक सिटी गए ।यह साउथ न्यूजर्सी मॅ ‘Atlantic Occean

पर बना एक लुभावना छोटा सा शहर है जहां कैसीनो की भरमार है।वीकएंड होने के कारण रास्ते भर बहुत भीड थी ।एडीसन से दो घंटे की यात्रा के बाद शाम को सात बजे के करीब हम “रिवेल रिर्सोट” मॅ पहुंचे ।चौदह मंजिले इस रिर्सोट मॅ हर मंजिल की अपनी पार्किंग है ।अन्दर अनेक रेस्टोरॅट, केसीनो ,रहने के कमरे तथा अन्य मनोरंजन के साधन हैं । काफी पीने के बाद बाहर निकले । समुद्र के किनारे तीन किलोमीटर की ‘बोर्डवाक ‘ करनी प्रारम्भ की ।सूर्यास्त हो रहा था ,समुद्र की उत्ताल तरंगे रंगमयी हो कर नाच रहीं थीं ।धीमी गति से बहती हवा और दूर से आती संगीत की मधुर लहरियां ने वातावरण को और मादक बना दिया था ।दूसरी और अनेक ‘केसीनो’ थे–ताजमहल ,बाली आदि ।दूर ‘पराडो’ की नियोन बत्तियां झिलमिला रहीं थीं ।सब कुछ बडा मनमोहक था।

आगे बढने पर दायीं और छोटी-छोटी दुकानॅ शुरु हो गई थीं जिनमॅ हर प्रकार की वस्तुऍ उपलब्ध थीं ।अनेक भारतीय इन दुकानॉ के मालिक हैं ।यहां कोई  जादू के खेलॉ का आनन्द उठा रहा था तो  कोई टेटू   बनवा रहा था,कहीं हस्तरेखाऍ देखी जा रहीं थीं तो कहीं टैरेटकार्ड रीडिंग होरही थी…

मां तुझे प्रणाम कैसे करूं  ?

गुलाब सा चेहरा जो कांटॉ से घिरे रहने पर भी हंसता रहता है,

पर मन्द-मन्द मुस्कान की महक चहुं और बिखरती रहती है ।

पर आज तेरे चित्र पर फूल भी नहीं चढाना चाहती ,

क्यॉकि फूल मुरझा जाते हैं ,सुगंध हवा मॅ विलीन हो जाती है,

पर मां सदा रहती है ।

फिर क्या याद करूं  तुझे आज शब्दॉ से ।

कहते हैं शब्द कालातीत होते हैं ,

शब्द मरते नहीं ,शाश्वत हैं ।

ईश्वर के बाद तू ही है-अनन्त,असीम ।

हर किसी को ममता के आंचल मॅ छिपाने वाली

पर शब्दॉ से कैसे करूं तुझे प्रणाम,

क्यॉकि मैं कोई कालजयी कवि नहीं ।

मेरे शब्द मेरी सांसॉ के साथ विलीन हो जायेंगे,

पर मां तो रहेगी चिरकाल तक ।

मां तू तू है–अनुपम श्रद्धेय ।

एक ही इच्छा है-

मेरी अन्तिम बेला मॅ ,मेरी उखडती सांसॉ मॅ

मेरे उखडते स्वर मॅ

ईश्वर के नाम के साथ तेरा भी नाम हो ।

ओ मेरी सुख-दुख की संगिनी मां

तुझे प्रणाम शत-शत प्रणाम…

उस शनिवार को मौसम भी अच्छा था और साउथ न्यू जर्सी के बेलमोर मॅ 5th औरoccean avenue पर जाने का कार्यक्रम बना ।यहां २६वां  वार्षिक सी-फूड फेस्टीवल था ।सुबह नाशते के बाद दस बजे हम चल पडे । लंच वहीं करने का प्रोग्राम था ।एक-सवा घंटे की ड्राइव थी पर दो घंटे लग गए ।हाइवे पर छह पंक्तियां आने की और छह ही जाने की थी पर ऐसा लग रहा था कि मौसम खुशगवार होने के कारण हर कोई समुद्र की और भाग रहा था ।

बारह बजे के करीब हम ‘बेलमोर ‘पहुंच गए ।एक तरफ समुद्र था ,साथ-साथ सडक चल रही थी जिसपर गाडियॉ की कतार की कतार ।समुद्र तट पर लोग तटीय पोशाक मॅ अपने सामानॉ के साथ लदे-फदे ।बच्चॉ,स्त्री-पुरूषॉ की भीड ।एक घंटा घूमने के पश्चात पार्किंग की जगह मिली ।हम सब हंस रहे थे कि जितना समय आने मॅ लगा उसका आधा समय पार्किंग मॅ लग गया ।

खैर उतरे । गर्मी काफी थी। यहां मौसम अपने रंग दिखाता रहता है-एक दिन गर्मी तो अगले दिन बारिश और फिर हल्की ठंडक कि पतली स्वेटर पहन ली जाए ।भूख भी लग आई थी ।अतः पहले सोचा कि पेट पूजा कर ली जाए ।कंधे से कंधा टकरा रहा था ।यह हमारे यहां किसी भी त्योहार पर लगने वाले मेले की भांति ही था ।खाने-पीने के अनेकानेक स्टाल पर अन्तर था कि अधिकांश स्टाल समुद्र मॅ पाए जाने  जीवॉ-जैसै मछली,केकडा,श्रिम्प ,लोबस्टर…

सफर हुआ पूरा ।’अच्छा तो हम चलते हैं’ गाने वाले हीरो का इस दुनिया का सफर पूरा हुआ ।साठ के दशक के अन्त मॅ सफलता की सीढीयां तेजी से चढते बालीवुड के इस सुपरहीरो को उसकी अदाऑ,रोमांस ,किशोरकुमार के सुर मॅ गाए गए अमर गीतॉ को भारतीयॉ ने अपने दिल मॅ एक विशेष जगह प्रदान की । ’जिन्दगी का सफर यह है कैसा सफर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं’। वास्तव मॅ राजेश खन्ना के जीवन का सफर ऐसा ही था ।बालीवुड के इस प्रथम सुपरहीरो ने दो वर्ष मॅ १५ सुपरहिट फिल्मॅ दी,ऐसे गाने जो आज की पीढी भी मस्त हो गुनगुनाती है। ‘अमरप्रेम’ का कलाकार ने कैंसर से पीडित हो कर भी अपनी पीडा को जगजाहिर होने से बचाए रक्खा ।अलविदा अलविदा…