जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
…………
दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की 🙏…
‘रामचरितमानस ‘ का अनेकों बार जीवन में पठन-पाठन किया है ।बचपन में ‘ सम्पूर्ण रामायण ‘ देखी थी पर कल ‘उत्तर रामायण’ का अंतिम episode मन को झकझोर गया ।सदियों से मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और गरिममयी जगतजननी सीता की गाथा जनमानस के ह्रदयों में अपना स्थान बनाए हुए है ,आशीर्वाद दिया जाता है सीता की भाँति सौभाग्यवती भव ।
सीता के जीवन की अनेक छवियाँ हैं – राजमहलों में पली सुकुमार वैदेही , दशरथ की पुत्रवधू ,रघुनन्दन की पत्नी बन वनों में विचरने वाली सीता ,अयोध्या की महारानी सीता और फिर बाल्मीकि के आश्रम में कठोर तपस्विनी ममतामयी वनदेवी ।सीता का वनदेवी रूप नारी की अदम्य जिजीविषा का प्रतीक है जो आश्रम में अपनी
सन्तान को जन्म दे कर निरंतर संघर्ष कर उन्हें स्वावलंबी संस्कारी और शिक्षित बनाती है ।जो प्रश्न मुझे मथ रहा है ,बैचेन कर रहा है -नारी की बार बार परीक्षा क्यों , आलोचना क्यों ,राजा के लिए अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए समाज की मोहर की आवश्यकता क्यों ।यह नारी की अस्मिता पर प्रहार है ।पति द्वारा राजधर्म की रक्षा हेतु निर्वासित सीता पिता के घर भी जा सकती थी पर वह स्वाभिमानिनी नहीं गई ।लव -कुश द्वारा वाल्मीकिकृत रामायण सुनने के पश्चात् पूर्ण सभा द्रवित हो उठती है पर प्रश्न कोई नहीं उठाता ।राजगुरु वशिष्ट भी अनुत्तरित हैं ।राजाराम पुनः लोकोपवाद से बचने के लिए सीता को सभा में उपस्थित हो शुद्धता की शपथ लेने की शर्त रखते हैं ।ये…
बॉलीवुड का एक और स्तम्भ धराशायी हो गया ।अभिनेता ऋषिकपूर नहीं रहे ।अपनी जिजीविषा और अदम्य शक्ति के साथ कैंसर जैसे रोग के साथ लगभग दो वर्ष लड़ते हुए आज अपने प्राण त्याग दिए ।१९७० में ‘मेरा नाम जोकर ‘ फ़िल्म में junior राजकपूर के अभिनय से अपनी फ़िल्म यात्रा शुरू करने वाले ऋषिकपूर जब १९७३ में ‘बॉबी’ में एक रोमांटिक युवा अभिनेता के रूप में डिम्पल कपड़िया के साथ आए तो जहाँ इस फ़िल्म ने अप्रत्याशित सफलता प्राप्त की वहीं युवा वर्ग ही नहीं सभी आयु वर्ग के लोगों में अपनी छवि
स्थापित कर ली ।उसके बाद ऐसी फ़िल्मों की एक लम्बी क़तार है जिनमे -क़र्ज़ ,सागर ,हिना ,कभी -कभी ,अमर-अकबर -ऐन्थॉनी ,प्रेमरोग ,दीवाना उल्लेखनीय हैं ।९० के दशक के उत्तरार्ध में ‘आ
अब लौट चलें ‘ जैसी सफल फ़िल्म का निर्देशन किया ।उम्र के साथ मुख्य अभिनेता का किरदार छोड़ कर जब चरित्र अभिनय करना प्रारम्भ किया तो यहाँ भी वे अपने अभिनय कौशल से छा जाते थे फिर वह चरित्र चाहे ‘पटियाला हाउस’ ‘अग्निपथ’ के क्रोधी पिता का हो या कपूर एंड sons के प्यारे दादाजी का ,student of the year के प्रिन्सिपल का हो या १०२ नॉट आउट में अमिताभ के पुत्र का ।सभी उनकी कला और स्पष्टवादिता के क़ायल थे ।ऐसे कलाकार को मेरा अश्रुपूरित 🙏नमन…
महामारी और लॉक्डाउन के संघर्ष के इन दिनों में किसी ने लिखा -we all are sailing in the same boat ।पढ़ने के बाद से मन में एक बैचेनी सी है।क्या सच में हम सब एक ही नाव में सवार हैं?
घरों के अन्दर रह कर भी सबका जीवन अलग-अलग प्रकार का है ।कुछके लिए साप्ताहिक दिनचर्या है -ऑफ़िस के लिए समय से लॉगइन होना ( उन्हें शिकायत है काम बढ़ गया है ) ,कुछ को अकेलेपन से लड़ना पड़ रहा है ,कुछ चाय-कॉफ़ी-सिगरेट पी पी कर समय काट रहें हैं तो कुछ कूड़े के ढेर में
से भोजन टटोल रहें हैं ।कुछ इसलिए काम पर वापस जाना चाहते हैं क्यूँकि उनके सम्मुख
अब परिवार के पेट पालन की समस्या मुँह बाए खड़ी है -निश्चित नहीं कि नौकरी रहेगी कि ख़त्म हो जाएगी ।कुछ सरकार को जी भर कर गाली दे रहें हैं ,कुछ को लगता है यह कुछ ऐसी गम्भीर समस्या नहीं केवल मीडिया और सरकार की मिली भगत है ।कुछ प्रार्थना में लीन हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए ।ऐसे भी हैं जो corona से पीड़ित होकर स्वस्थ हो गये और कुछने अपने प्रियजन को खो भी दिया ।
स्पष्ट है कि हम सब एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ हमारी सोच और आवश्यकता एकदम भिन्न है और इस तूफ़ान के गुज़र जाने के बाद अलग होगी ।हम सब दूसरों की पीड़ा को समझ कर उसे बाँटने का प्रयास करें ।हमें अपनी नाव सबको साथ लेकर ज़िम्मेवारी और करुण भाव के साथ खैनी है तभी कह पायेंगे-during storm we sailed in the same boat.…
महामारी और लॉक्डाउन के संघर्ष के इन दिनों में किसी ने लिखा -we all are sailing in the same boat ।पढ़ने के बाद से मन में एक बैचेनी सी है।क्या सच में हम सब एक ही नाव में सवार हैं?
घरों के अन्दर रह कर भी सबका जीवन अलग-अलग प्रकार का है ।कुछके लिए साप्ताहिक दिनचर्या है -ऑफ़िस के लिए समय से लॉगइन होना ( उन्हें शिकायत है काम बढ़ गया है ) ,कुछ को अकेलेपन से लड़ना पड़ रहा है ,कुछ चाय-कॉफ़ी-सिगरेट पी पी कर समय काट रहें हैं तो कुछ कूड़े के ढेर में
से भोजन टटोल रहें हैं ।कुछ इसलिए काम पर वापस जाना चाहते हैं क्यूँकि उनके सम्मुख
अब परिवार के पेट पालन की समस्या मुँह बाए खड़ी है -निश्चित नहीं कि नौकरी रहेगी कि ख़त्म हो जाएगी ।कुछ सरकार को जी भर कर गाली दे रहें हैं ,कुछ को लगता है यह कुछ ऐसी गम्भीर समस्या नहीं केवल मीडिया और सरकार की मिली भगत है ।कुछ प्रार्थना में लीन हैं कि शायद कोई चमत्कार हो जाए ।ऐसे भी हैं जो corona से पीड़ित होकर स्वस्थ हो गये और कुछने अपने प्रियजन को खो भी दिया ।
स्पष्ट है कि हम सब एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ हमारी सोच और आवश्यकता एकदम भिन्न है और इस तूफ़ान के गुज़र जाने के बाद अलग होगी ।हम सब दूसरों की पीड़ा को समझ कर उसे बाँटने का प्रयास करें ।हमें अपनी नाव सबको साथ लेकर ज़िम्मेवारी और करुण भाव के साथ खैनी है तभी कह पायेंगे-during storm we sailed in the same boat.
जयशंकर प्रसाद के शब्दों में –
दुःख का करके सत्य निदान
प्राणियों का करने उद्धार
…………
दुःख का समुदय उसका नाश
तिमिर का हरने को दुःख भार
तेज़ अमिताभ आलोकिक कांत
बुद्ध जैसे महापुरूष का आविर्भाव मानवजाति को दया ,करुणा ,प्रेम ,समता ,अहिंसा का सन्देश देने के लिए होता है ।आज विश्व पीड़ित है,महामारी का प्रकोप निरंतर बढ़ रहा है।प्रतिदिन कोरोना पीड़ितों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।संसार के अनेक देशों में मृत्यु का ताण्डव नर्तन दृष्टिगत है ,आँसू हैं,कराहट है ,भूख है ,पीड़ा है ,अभाव है ,संघर्ष है ।मानव विवश है।प्रसादजी की कामायनी महाकाव्य की प्रथम पंक्तियाँ याद आ रहीहैं -महाप्रलय के बाद का चित्रण है
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छांव
एक पथिक भीगे नयनो से
देख रहा था प्रलय प्रवाह
हम भी विवश हैं पर विवशता को त्यागना होगा क्योंकि आज आवश्यकता है दुःखी के ,रोग पीड़ित के आँसू पोछने की ,उन्हें सांत्वना देने की ,सहयोग की ,सहानुभूति की और दया -प्रेम-करुणा की ।कर्मवीरों के सम्मान की |
वर्ष 2020 विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।वास्तव में ज़िन्दगी का दूसरा नाम परिवर्तन है ।सत्तर के दशक का एक प्रसिद्ध गीत है-
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना
सच किसको पता था कि नव वर्ष अपने साथ सम्पूर्ण संसार के लिए ऐसी प्राकृतिक आपदा लेकर आएगा ।उतार-चढ़ाव ,उत्थान -पतन ,सुख-दुःख सृष्टि के नियम हैं उससे कैसा घबराना ।जीवन के हर कठिन प्रश्न का जीवन से ही हल मिलता है ।दिन-रात ,सूर्योदय-सूर्यास्त ,चाँदनी -नीलाभ गगन- चाँद-तारे ,बदलती ऋतुऐं प्रकृति का यह रूप आकर्षक है तो अनगिनत वर्षों से मानव-जाति द्वारा निरंतर कुचली जा रही प्रकृति के क्रोध का , उसके भयंकर रूप को भी स्वीकार करना पड़ेगा ।समुद्र गरजता है तो शांत निर्मल सागर मन को असीम शांति भी देता है , गरजते -बरसते बादल नदियों के जल को बाढ़ में बदल देते हैं तो तपती धरा को शान्त भी करते हैं ।विश्वास की प्रार्थना अंधकार के हर बंधन को तोड़ने में समर्थ होती है ।विश्वास रखिए -हम होंगे कामयाब…
वर्ष 2020 विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।वास्तव में ज़िन्दगी का दूसरा नाम परिवर्तन है ।सत्तर के दशक का एक प्रसिद्ध गीत है-
ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना
यहाँ कल क्या हो किसने जाना
सच किसको पता था कि नव वर्ष अपने साथ सम्पूर्ण संसार के लिए ऐसी प्राकृतिक आपदा लेकर आएगा ।उतार-चढ़ाव ,उत्थान -पतन ,सुख-दुःख सृष्टि के नियम हैं उससे कैसा घबराना ।जीवन के हर कठिन प्रश्न का जीवन से ही हल मिलता है ।दिन-रात ,सूर्योदय-सूर्यास्त ,चाँदनी -नीलाभ गगन- चाँद-तारे ,बदलती ऋतुऐं प्रकृति का यह रूप आकर्षक है तो अनगिनत वर्षों से मानव-जाति द्वारा निरंतर कुचली जा रही प्रकृति के क्रोध का , उसके भयंकर रूप को भी स्वीकार करना पड़ेगा ।समुद्र गरजता है तो शांत निर्मल सागर मन को असीम शांति भी देता है , गरजते -बरसते बादल नदियों के जल को बाढ़ में बदल देते हैं तो तपती धरा को शान्त भी करते हैं ।विश्वास की प्रार्थना अंधकार के हर बंधन को तोड़ने में समर्थ होती है ।विश्वास रखिए -हम होंगे कामयाब…
कल netsurfing करते हुए America में Corona के प्रभाव पर एक लेख पढ़ रही थी जिसमें किसी ने Newyork की वर्तमान अवस्था के लिए कहा-
‘Not completely dead,it just has this kind of ghost city tumbleweed quality ‘
क्या से क्या हो गया ।पिछले वर्षों में अनेक बार अमेरिका की यात्राएँ की हैं । Newyork शहर का अधिकांश हिस्सा मेंने घूमा है ।वह शहर जो संपूर्ण विश्व से पर्यटकों को आकर्षित करता है।Times Square वह जीवन्त हिस्सा जो 24 घंटे सोता नहीं neon lights, electronic billboards, branded stores ,music -dance भीड़ से भरपूर स्थान ।आज सड़कें जनविहीन हैं प्रकाश तो है पर सन्नाटा छाया है ।सुनसान दुकाने, स्टोर बंद उजड़ा चमन ।corona का America में सबसे अधिक
प्रभाव newyork शहर पर हुआ है ।शक्तिशाली समृद्ध देश आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के होते हुए भी अपने नागरिकों की इस महामारी से पूर्ण सुरक्षा करने में असमर्थ हो रहा है ।
कॉलेज में पढ़ाते हुए वर्षों मेंने हिन्दी Hons तृतीय वर्ष को छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत की ‘परिवर्तन ‘ कविता पढ़ाई पर यह कभी नहीं सोचा था कि उसमें वर्णित सत्य इस प्रकार से घटित होगा । उस असीम के सम्मुख मानव नगण्य है –
अहै निष्ठुर परिवर्तन
तुम्हारा ही ताडंव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन
निखिल उत्थान-पतन
……
करते हो विश्व को उत्पीडन
स्पष्ट है उस असीम का हल्का सा प्रकोप भी हमें जीवन
गुप्तजी की यशोधरा मॅ राहुल कहता है–
“मां कह एक कहानी
बेटा समझ् लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी
कहती है मुझसे यह चेटी
तू मेरी नानी की बेटी”
तो बचपन का मतलब था गर्मी की छुट्टीयॉ मॅ नानी के घर जाना ,मजा करना और रात को नानी से कहानी सुनना ।जिस दिन से new jersy आई हूं रोज रात को मेरी सात वर्षीय नातिन सान्वी मेरे पास आकर कहती है नानी आज आपको कौन सी कहानी पढ कर सुनाऊं ।समय बदल गया है ।उसकी पढी कहानी मेरे लिए लोरी का काम करती है और मैं बिना दवा के गहरी नींद मॅ सो जाती हूं ।
तो आज नानी की कहानी की बजाए नातिन की कहानी अधिक रोचक है।…